मुर्दा-स्थगित
शहर के अख़बार तो पिछले कई दिनों से चिल्ला रहे थे कि जिस दिन हुज़ूर की पुत्री ससुराल जाएगी, सारा शहर रोएगा। बात कहने का ढंग कुछ फूहड़ हो गया, अन्यथा रोने को भी अलंकृत किया जा सकता है जो कि अख़बार कर रहे थे यथा 'हर आँख नम होगी', प्रेमाश्रु के मोर्मियों