
सचमुच जब लोग ख़ुद मार-पीट करके या रिश्तेदारों को पंच बनाकर अपना झगड़ा निबटा लेते थे तब वे बहादुर थे। अदालतें आयीं और वे कायर बन गए।

ये अदालतें लोगों के भले के लिए नहीं हैं। जिन्हें अपनी सत्ता कायम रखनी है, वे अदालतों के ज़रिए लोगों को बस में रखते हैं।

तू स्वयं अपना उच्च न्यायालय है। अपनी रचना का मूल्यांकन केवल तू ही कर सकता है।

अदालतों का एक अलिखित क़ानून है कि अदालत और वकील, अकबर-बीरबल-विनोद के पैमाने पर कभी-कभी हाज़िरजवाबी दिखाते हैं और एक-दूसरे से मज़ाक करते हैं।

न्याय की अदालतों से भी एक बड़ी अदालत होती है। वह अदालत अंतर की आवाज़ की है और वह अन्य सब अदालतों से ऊपर की अदालत है।

उसने लगभग सात साल पहले दीवानी का एक मुक़दमा दायर किया था; इसलिए स्वाभाविक था कि वह अपनी बात में पुनर्जन्म के पाप, भाग्य, भगवान्, अगले जन्म के कार्यक्रम आदि का नियमित रूप से हवाला देता।

यह कितनी विचित्र बात है कि न्यायालय का अस्तित्व अन्याय के कारण है।

विश्व का इतिहास विश्व का न्यायालय है।