नरेंद्र देव की संपूर्ण रचनाएँ
उद्धरण 1

न्याय की धारणा मनुष्य-समाज को में रखने वाली आंतरिक श्रृंखला है। व्यवस्था और क्रम अपनी एक न्याय की क्रम और नियंत्रण समाज की प्रत्येक धारणा रखता है। यह धारणा उस सामाजिक व्यवस्था को पूर्णता के लक्ष्य और आदर्श की ओर संकेत करती रहती है। विचारों की क्रांति का काम हमारी न्याय की धारणा को नए मार्ग पर लाना है।