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हिंदी पर उद्धरण

एक भाषा और मातृभाषा

के रूप में हिंदी इसका प्रयोग करने वाले करोड़ों लोगों की आशाओं-आकांक्षाओं का भार वहन करती है। एक भाषाई संस्कृति के रूप में उसकी जय-पराजय चिंतन-मनन का विषय रही है। वह अस्मिता और परिचय भी है। प्रस्तुत चयन में हिंदी, हिंदीवालों और हिंदी संस्कृति को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

हमें अंग्रेज़ी की आवश्यकता है, किंतु अपनी भाषा का नाश करने के लिए नहीं।

महात्मा गांधी

आध्यात्मिक भोजन के लिए भी भारत के लोग जिस दिन अंग्रेज़ी का मुँह देखेंगे, उस दिन उनके डूब मरने के लिए चुल्लू भर पानी काफ़ी होगा। अंग्रेज़ी सीखिए-सिखाइए लेकिन उसे विश्वविद्यालयों में शिक्षा का माध्यम क्यों बनाते हैं?

रामविलास शर्मा

हिंदी अगर एक छोटी-सी भाषा होती, लोग उसे प्रेम और मनुष्यता के साथ बरतते तो उसका लेखक इतना अकेला नहीं होता।

मंगलेश डबराल

भावों का उत्कर्ष दिखाने और वस्तुओं का रूप, गुण और क्रिया का अधिक तीव्र अनुभव कराने में कभी-कभी सहायक होने वाली युक्ति ही अलंकार है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

भारत की सारी भाषाएँ राष्ट्रभाषाएँ हैं। हिंदी ही सिर्फ़ राष्ट्रभाषा है, यह मानना भी एक खंडित सत्य होगा।

केदारनाथ सिंह

हिंदी का रचनाकार इतने-इतने बंधनों में जकड़ा हुआ है कि हम निर्बंध रचना की उम्मीद कर भी नहीं सकते।

त्रिलोचन

यह कड़वी हक़ीक़त कि हम हिंदी के लेखक एक-दूसरे को शौक़, प्यार और उदारता से नहीं पढ़ते। अक्सर तो पढ़ते ही नहीं। पढ़ भी लें तो बता नहीं देते कि पढ़ लिया है।

कृष्ण बलदेव वैद

हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीवी है—बहुत बोलने वाली बहुत खाने वाली बहुत सोने वाली।

रघुवीर सहाय

अक्सर हिंदी का ईमानदार लेखक भ्रम और उत्तेजना के बीच की ज़िंदगी जीता है।

शरद जोशी

यहाँ (हिंदी में) केवल आरोप लगते हैं और निर्णय दिए जाते हैं। बल्कि आरोप ही अंतिम निर्णय होते हैं।

शरद जोशी

हिंदी के हैड हमेशा कवि-आलोचक होते हैं।

स्वदेश दीपक

हिंदी की समकालीन समीक्षा में बार-बार जो नवलेखन से अनास्था की शिकायत की जाती है, दुर्भाग्य से उसकी प्रकृति बहुत कुछ बहेलिया-विप्र के शाप जैसी है।

धर्मवीर भारती

आधुनिक हिंदी वह सामान्य भाषा है, जिसका समाज के अनेक स्तरों पर पार्थक्यविशिष्ट एक सर्वस्वीकृत व्यवस्था-विधान है।

त्रिलोचन