हिंदी पर संस्मरण
एक भाषा और मातृभाषा
के रूप में हिंदी इसका प्रयोग करने वाले करोड़ों लोगों की आशाओं-आकांक्षाओं का भार वहन करती है। एक भाषाई संस्कृति के रूप में उसकी जय-पराजय चिंतन-मनन का विषय रही है। वह अस्मिता और परिचय भी है। प्रस्तुत चयन में हिंदी, हिंदीवालों और हिंदी संस्कृति को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।
हिंदी के एक रूपदाता : रूपनारायण पांडेय
रूपनारायण जी पांडेय को याद करते हुए स्वाभाविक रूप से भाषा की समस्या वाली बात मन में उनके लखनवी होने के कारण ही उभर आई। लखनऊ खड़ी बोली के उर्दू रूप का जाना माना गढ़ था। वहाँ जिन लोगों में 'अच्छी-ख़ासी मीठी ज़ुबान को संस्कृत शब्दों से 'बदसूरत बनाने की
अमृतलाल नागर
वसंत-पंचमी निराला की स्मृतियों का समारोह
अभी न होगा मेरा अंत अभी-अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल वसंत अभी न होगा मेरा अंत हरे-हरे ये पात, डालियाँ, कलियाँ कोमल गात मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर फेरूँगा निद्रित कलियों पर जगा एक प्रत्यूष मनोहर पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं, अपने