सरस्वती पर उद्धरण
सरस्वती विद्या की देवी
हैं। उनकी स्तुति और प्रशंसा में प्राचीन समय से ही काव्य-सृजन होता रहा है। विद्यालयों में प्रार्थना के रूप में निराला विरचित ‘वर दे, वीणावादिनी वर दे!’ अत्यंत लोकप्रिय रचना रही है। समकालीन संवादों और संदर्भों में भी सरस्वती विषयक कविताओं की रचना की गई है।

‘सरस्वती’ का अर्थ है ‘रसवती’, ‘जलवती’ के साथ-साथ ‘लावण्यवती’।

‘सरस्वती’ और ‘सरयू’ दोनों शुद्ध आर्य शब्द हैं।

वस्तुतः ‘सरस्वती’ शब्द में ‘सरस’ पद का एक अर्थ है ‘सजल’ और दूसरा अर्थ है ‘लक्षण’।