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कल्हण

कश्मीर

कल्हण की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 31

संसार में कोई भी ऐसा नहीं है जो नीति का जानकार हो किंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं।

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जब धीर व्यक्ति कर्त्तव्य पूर्ण कर विश्राम में मन लगाता है तभी विधाता उसको अन्य महान कार्य भार अर्पित कर देता है।

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नदियों द्वारा समुद्र में डाला गया जल मेघों द्वारा पुनः मिल जाता है परंतु बनिए के घर रखी गई धरोहर फिर नहीं मिलती है।

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प्राण-संशय होने पर प्राणियों के लिए कुछ भी अकरणीय नहीं होता है।

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वस्त्र उतारने के काल में ही तीर्थ जल से शीतजन्य त्रास होता है, स्नान कर लेने पर अनुपम ब्रह्मानंद सदृश आह्नदसुख की उपलब्धि होती है। इसी प्रकार प्रारंभ में रणभूमि में शरीर का त्याग करने वालों को विह्वलता होती है किंतु उसके पश्चात् तो मोक्ष-सुख की प्राप्ति से परम शांति मिलती है।

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