कल्हण की संपूर्ण रचनाएँ
उद्धरण 16

जैसे इस आकाश में बादलों के वे ही टुकड़े भिन्न रूप धारण करते हैं—कभी हाथी, कभी चीते, कभी राक्षस, कभी सर्प और कभी अश्व आदि का भ्रम उत्पन्न करते रहते है, उसी प्रकार क्षण-क्षण में विभिन्नता होने के कारण शरीर-धारियों के हृदय में उठने वाली ये विकारों की लहरें, कभी सौम्य और कभी क्रूर विकृतियाँ उत्पन्न करती है।