वस्त्र उतारने के काल में ही तीर्थ जल से शीतजन्य त्रास होता है, स्नान कर लेने पर अनुपम ब्रह्मानंद सदृश आह्नदसुख की उपलब्धि होती है। इसी प्रकार प्रारंभ में रणभूमि में शरीर का त्याग करने वालों को विह्वलता होती है किंतु उसके पश्चात् तो मोक्ष-सुख की प्राप्ति से परम शांति मिलती है।