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कल्हण

कश्मीर

कल्हण की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 16

संसार में कोई भी ऐसा नहीं है जो नीति का जानकार हो किंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं।

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नदियों द्वारा समुद्र में डाला गया जल मेघों द्वारा पुनः मिल जाता है परंतु बनिए के घर रखी गई धरोहर फिर नहीं मिलती है।

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प्राण-संशय होने पर प्राणियों के लिए कुछ भी अकरणीय नहीं होता है।

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बालकों मूर्खों की तो गिनती क्या, महान लोगों की भी चित्तवृत्ति सदा एकाग्र नहीं रहती।

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जैसे इस आकाश में बादलों के वे ही टुकड़े भिन्न रूप धारण करते हैं—कभी हाथी, कभी चीते, कभी राक्षस, कभी सर्प और कभी अश्व आदि का भ्रम उत्पन्न करते रहते है, उसी प्रकार क्षण-क्षण में विभिन्नता होने के कारण शरीर-धारियों के हृदय में उठने वाली ये विकारों की लहरें, कभी सौम्य और कभी क्रूर विकृतियाँ उत्पन्न करती है।

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