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छल पर उद्धरण

यदि समग्र भाव से समस्त नारी जाति के दुःख-सुख और मंगल-अमंगल की तह में देखा जाए, तो पिता, भाई और पति की सारी हीनताएँ और सारी धोखेबाज़ियाँ क्षण भर में ही सूर्य के प्रकाश के समान आप से आप सामने जाती हैं।

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय

तुम उसी सनातन पुरुष-समाज के नवीन प्रतिनिधि हो जिसने युगों से नारी को छल से ठगकर, बल से दबाकर विनय से बहकाकर और करुणा से गलाकर उसे हाड़माँस की बनी निर्जीव पुतली का रूप देने में कोई बात उठा नहीं रखी है।

इलाचंद्र जोशी

आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति इतनी है कि वह दूसरों को धोखा देने की शक्ति से बहुत अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार आदमी है।

महात्मा गांधी

धोखा देने वाला धोखा खाता है, प्रवंचना का परिणाम हार होता है, दूसरों के रास्ते में गड्ढा खोदने वाले को कुआँ तैयार मिलता है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

जो छल से धन प्राप्त करता है, वह धर्म से भ्रष्ट हो जाता है।

वेदव्यास

जिसने जन्म से लेकर आज तक धूर्तता नहीं सीखी है, उस व्यक्ति की बात तो अप्रामाणिक है और जो दूसरों को धोखा देने को एक विधा के रूप में सीखते हैं, वे पूर्ण सत्यवादी माने जाएँ।

कालिदास

धन—अन्य वस्तुओं के समान ही एक धोखा और निराशा है।

एच.जी. वेल्स

शठता करने वाले शत्रु को शठता द्वारा ही मारना चाहिए। शठता करने वाले व्यक्ति को छल से मारने में पाप नहीं बताया गया है।

वेदव्यास

स्नेह में छल नहीं किया जाता है।

भास

छल का बहिरंग सुंदर होता है—विनीत और आकर्षक भी; पर दुःखदायी और हृदय को बेधने के लिए।

जयशंकर प्रसाद
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मित्रता में छल नहीं किया जाता।

भास