जंगल पर उद्धरण
जंगल एक आदिम उपस्थिति,
एक पारितंत्र और जीवन के स्रोत के साथ ही एक प्रवृत्ति का प्रतिनिधि है। इस चयन में जंगल विषयक कविताओं का संग्रह किया गया है।

मैं कोई मतदान नहीं करूँगा। कर नहीं चुकाऊँगा। किसी पंक्ति में खड़े होकर क्यू नहीं बनाऊँगा। कोई उपाधि, सम्मान, लाइसेंस, बीमा, पासपोर्ट, परमिट, पद या पोर्टफ़ोलियों नहीं लूँगा। मैं सामाजिक सुरक्षा नहीं चाहता। बहीखाते ढोने और औरों के लिए कंधे पर बंदूक़ें ढोने और गोली चलाने के बजाय मैं जंगलों और गुफाओं में चला जाऊँगा…।

आप भेड़िए को चाहे कितना भी खिला दें, लेकिन वह हमेशा जंगल पर निर्भर रहता है।

जैसे जंगल में एक हाथी के पीछे बहुत से हाथी चले आते हैं, उसी प्रकार धन से ही धन बँधा चला आता है।

कोई कितना ही शुद्ध और उद्योगी क्यों न हो, लोग उस पर दोषारोपण कर ही देते हैं। अपने धार्मिक कर्मों में लगे हुए वनवासी मुनि के भी शत्रु, मित्र और उदासीन ये तीन पक्ष पैदा हो जाते हैं।

जंगल में रहने वाले पक्षी की उपेक्षा पिंजड़े का पक्षी ही अधिक फड़फड़ाता है।

आख़िर ईश्वर है क्या? एक शाश्वत बालक जो शाश्वत उपवन में शाश्वत क्रीड़ा में लगा हुआ है।
