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छाया पर उद्धरण

छाया, छाँव, परछाई विषयक

कविताओं का चयन।

तुम जो हो तुम उसे नहीं देखते, तुम उसे देखते हो जो तुम्हारी परछाईं है।

रवींद्रनाथ टैगोर

पतन, उत्थान की; मृत्यु, जीवन की एक मात्र सखा-छाया है।

श्री नरेश मेहता

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