तुम जो हो तुम उसे नहीं देखते, तुम उसे देखते हो जो तुम्हारी परछाईं है।
पतन, उत्थान की; मृत्यु, जीवन की एक मात्र सखा-छाया है।
तुम जो हो तुम उसे नहीं देखते, तुम उसे देखते हो जो तुम्हारी परछाईं है।
पतन, उत्थान की; मृत्यु, जीवन की एक मात्र सखा-छाया है।
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