
डर के साथ झूठ और औचित्य भी आते हैं, जो चाहे कितने भी विश्वसनीय क्यों न हों; हमारे आत्म-सम्मान को कम कर देते हैं।

आत्मस्वरूप को भूलकर जो अहंभाव उठता है वही अहंकार है, जो विकार से त्रिगुण को क्षुब्ध करता है।

ज़रा से जीर्ण रूपों को, रोग से क्षीण शरीरों को और काल से ग्रस्त आयु को देखकर किसे अभिमान हो सकता है!