
डर के साथ झूठ और औचित्य भी आते हैं, जो चाहे कितने भी विश्वसनीय क्यों न हों; हमारे आत्म-सम्मान को कम कर देते हैं।

आत्मज्ञान, कार्यों का सभारंभ, तितिक्षा, धर्म में स्थिरता—ये सब गुण जिसको उद्देश्य से दूर नहीं हटाते, उसी को पंडित कहा जाता है।

बुद्धत्व का आगमन किसी नेता या गुरु द्वारा नहीं होता, आपके भीतर जो कुछ है उसकी समझ द्वारा ही इसका आगमन होता है।
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आप बिना किसी पुस्तक को पढ़े या बिना साधु—संतों और विद्वानों को सुने अपने मन का अवलोकन कर सकते हैं।
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आत्म-मूल्य को बढ़ाने के लिए आपको अपने जीवन में लगातार मूल्य जोड़ते रहना होगा।

आत्मस्वरूप को भूलकर जो अहंभाव उठता है वही अहंकार है, जो विकार से त्रिगुण को क्षुब्ध करता है।

अंततः सबसे अच्छी क़िस्मत वह होती है, जिसे आप ख़ुद बनाते हैं।
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आपके पास ऐसा मन होना चाहिए जो पूर्णतः: अकेले होने में समर्थ हो, तथा जो दूसरे व्यक्तियों के अनुभवों और प्रचार से बोझिल न हो।

तुम सच्ची दोस्ती, असली जुड़ाव, अडिग प्रेम के हकदार हो और जब तुम उसे चुनते हो तो दुनिया बदल जाती है।
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जितना ज़्यादा तुम ख़ुद को उस भूमिका में फ़िट करने की कोशिश करते हो, उतना ही तुम उन रिश्तों और उस समुदाय से दूर होते हो, जो सच में तुम्हारे लिए बने हैं।
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आत्म-प्रेम के बारे में बहुत कुछ कहा गया है, लेकिन चलिए इसे स्पष्ट करते हैं:- ये स्वार्थ नहीं है, ये ठीक उसका उल्टा है।

जो व्यक्ति स्वयं को कीड़ा बना ले; वह बाद में शिकायत नहीं कर सकता, यदि लोग उस पर पैर रख दें।

उन लोगों के लिए बार-बार उपलब्ध होना बंद करो, जिन्हें तुम्हारे होने में कोई दिलचस्पी नहीं।

अगर कोई तुम्हें नज़रअंदाज़ करता है, अपमान करता है, या भूल जाता है—तो उनके लिए अपना समय और अपनी ऊर्जा ख़र्च करना बंद करो।

तुम सबके लिए नहीं हो और सब तुम्हारे लिए नहीं हैं—यही बात असली लगाव को इतना दुर्लभ और क़ीमती बनाता है।

ज़रा से जीर्ण रूपों को, रोग से क्षीण शरीरों को और काल से ग्रस्त आयु को देखकर किसे अभिमान हो सकता है!