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सच पर दोहे

साँच बराबरि तप नहीं, झूठ बराबर पाप।

जाके हिरदै साँच है ताकै हृदय आप॥

सच्चाई के बराबर कोई तपस्या नहीं है, झूठ (मिथ्या आचरण) के बराबर कोई पाप कर्म नहीं है। जिसके हृदय में सच्चाई है उसी के हृदय में भगवान निवास करते हैं।

कबीर

मूवा है मरि जाहुगे, मुये कि बाजी ढोल।

सपन सनेही जग भया, सहिदानी रहिगौ बोल॥

पहले के लोग मर चुके हैं। तुम भी मर जाओगे। मुये चाम का ही तो ढोल बजता है। संसार के लोग सपने में मिले हुए प्राणी-पदार्थों के मोही बने हैं। एक दिन यह सपना टूट जाता है। मर जाने के बाद लोगों में उसकी चर्चा ही कुछ दिनों तक पहचान रह जाती है।

कबीर

जमला कपड़ा धोइये, सत का साबू लाय।

बूँद लागी प्रेम की, टूक-टूक हो जाय॥

सत्य का साबुन लगाकर अपने मन-रूपी मलिन कपड़े को धोना चाहिए। प्रेम की यदि एक बूँद भी लग जाएगी तो (हृदय की मलिनता टूक-टूक होकर नष्ट हो जाएगी।

जमाल

अनृत वचन माया रचन, रतनावलि बिसारी।

माया अनरित कारने, सति तजि त्रिपुरारि॥

झूठ बोलना और कपट करना छोड़ दो। भगवान ने इन दोनों कारणों से सति का परित्याग कर दिया था।

रत्नावली

सब ते साँचा भला, जो साँचा दिल होय।

साँच बिना नाहिना, कोटि करे जो कोय॥

यदि हम अपने हृदय में सत्य की प्रतिष्ठा कर सकें तो सत्य के समान संसार में अन्य कोई उपलब्धि नहीं है। चाहे कोई करोड़ो उपाय करे, किंतु सत्य ज्ञान एवं सत्य आचरण के बिना सच्चा सुख नहीं मिल सकता।

कबीर

सत-इसटिक जग-फील्ड लै, जीवन-हॉकी खेलि।

वा अनंत के गोल में, आतम-बॉलहिं मेलि॥

दुलारेलाल भार्गव

जमला कपड़ा धोइये, सत का साबू लाय।

बूंद लागी प्रेम की, टूक टूक हो जाय॥

सत्य का साबुन लगाकर अपने मन-रूपी मलिन कपड़े को धोना चाहिए। प्रेम की यदि एक बूँद भी लग जाएगी तो (हृदय की) मलिनता टूक-टूक होकर नष्ट हो जाएगी।

जमाल

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