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रत्नावली

1520 - 1594 | कासगंज, उत्तर प्रदेश

भक्तिकाल से संबद्ध ब्रजभाषा की कवयित्री। नीति-काव्य के लिए उल्लेखनीय।

भक्तिकाल से संबद्ध ब्रजभाषा की कवयित्री। नीति-काव्य के लिए उल्लेखनीय।

रत्नावली की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 7

दोहा 191

जो जाको करतब सहज, रतन करि सकै सोय।

वावा उचरत ओंठ सों, हा हा गल सों होय॥

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रतन दैवबस अमृत विष, विष अमिरत बनि जात।

सूधी हू उलटी परै, उलटी सूधी बात॥

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रतन बाँझ रहिबो भलौ, भले सौउ कपूत।

बाँझ रहे तिय एक दुष, पाइ कपूत अकूत॥

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उर सनेह कोमल अमल, ऊपर लगें कठोर।

नरियर सम रतनावली, दीसहिं सज्जन थोर॥

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स्वजन सषी सों जनि करहु, कबहूँ ऋन ब्यौहार।

ऋन सों प्रीति प्रतीत तिय, रतन होति सब छार॥

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पद 7

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