पीछे मत फेंकिए (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
माई लार्ड! सौ साल पूरे होने में अभी कई महीनों की कसर है। उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी ने लार्ड कार्नवालिस को दूसरी बार इस देश का गवर्नर-जनरल बनाकर भेजा था। तब से अब तक आप ही को भारतवर्ष का फिर से शासक बनकर आने का अवसर मिला है। सौ वर्ष पहले के उस समय की ओर
बालमुकुंद गुप्त
एक दुराश (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
नारंगी के रस में ज़ाफ़रानी बसंती बूटी छानकर शिवशंभु शर्मा खटिया पर पड़े मौजों का आनंद ले रहे थे। ख़याली घोड़े की बाग़ें ढीली कर दी थीं। वह मनमानी जकंदे भर रहा था। हाथ-पाँवों को भी स्वाधीनता दे दी गई थी। वह खटिया के तूलअरज की सीमा उल्लंघन करके इधर-उधर
बालमुकुंद गुप्त
आशा का अंत (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
माई लार्ड! अब के आपके भाषण ने नशा किरकिरा कर दिया। संसार के सब दुःखों और समस्त चिंताओं को जो शिवशंभू शर्मा दो चल्लू बूटी पीकर भुला देता था, आज उसका उस प्यारी विजया पर भी मन नहीं है। आशा से बँधा हुआ यह संसार चलता है। रोगी को रोग से क़ैदी को क़ैद से, ऋणी
बालमुकुंद गुप्त
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