
काव्य को अपनी सुंदर अतिशयता से चकित करना चाहिए, न कि विलक्षणता से। पाठक को काव्य उसके अपने ही विचारों का शब्दरूप लगना चाहिए और लगभग एक स्मृति जैसा ही प्रतीत होना चाहिए।

पढ़कर आनंद के अतिरेक से आँखें यदि गीली न हो जाएँ तो वह कहानी कैसी?
काव्य को अपनी सुंदर अतिशयता से चकित करना चाहिए, न कि विलक्षणता से। पाठक को काव्य उसके अपने ही विचारों का शब्दरूप लगना चाहिए और लगभग एक स्मृति जैसा ही प्रतीत होना चाहिए।
पढ़कर आनंद के अतिरेक से आँखें यदि गीली न हो जाएँ तो वह कहानी कैसी?
हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली
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