स्मृति पर संस्मरण
स्मृति एक मानसिक क्रिया
है, जो अर्जित अनुभव को आधार बनाती है और आवश्यकतानुसार इसका पुनरुत्पादन करती है। इसे एक आदर्श पुनरावृत्ति कहा गया है। स्मृतियाँ मानव अस्मिता का आधार कही जाती हैं और नैसर्गिक रूप से हमारी अभिव्यक्तियों का अंग बनती हैं। प्रस्तुत चयन में स्मृति को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।
महाप्राण निराला : एक संस्मरण
निरालाजी का स्मरण आते ही अक्टूबर 1936 की संध्या का एक दृश्य सहसा आँखों में उभर आता है। उस वर्ष हिंदी-साहित्य-सम्मेलन का वार्षिक अधिवेशन काशी में हुआ था। सभापति थे संपादकाचार्य पंडित अंबिकाप्रसाद बाजपेयी और स्वागताध्यक्ष महामना पंडित मदनमोहन मालवीय। निरालाजी
विष्णु प्रभाकर
देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद
1935 का वर्ष था। इलाहाबाद क्रिश्चियन कॉलेज में अपना कृश शरीर साधारण वस्त्रों से आच्छादित किए एक दीर्घकाय व्यक्ति छात्रों को ईमानदारी और रचनात्मक कार्य का महत्त्व समझा रहा था। उसके कृषक जैसे मुख-मंडल पर दो विशाल नेत्र चमक रहे थे। ऐसा प्रतीत होता था मानो
पुरुषोत्तम दास टंडन
प्रवासियों के संबंध में मेरे संस्मरण
सन् 1876-77 के भीषण अकाल में—जब मैं केवल सोलह वर्ष का बालक था—मुझे पहले-पहल यह मालूम हुआ कि हमारे देशवासी अन्य देशों में बसने के लिए जाते या ले जाए जाते हैं। उसी समय मैंने आरकाटियों और एजेंटों को देखा, जो हृष्ट-पुष्ट मज़बूत मई-औरतों को भरती करके नेटाल
दीवान बहादुर पी. केशव पिल्ले
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