संगीत पर बेला
रस की सृष्टि करने वाली
सुव्यवस्थित ध्वनि को संगीत कहा जाता है। इसमें प्रायः गायन, वादन और नृत्य तीनों शामिल माने जाते हैं। यह सभी मानव समाजों का एक सार्वभौमिक सांस्कृतिक पहलू है। विभिन्न सभ्यताओं में संगीत की लोकप्रियता के प्रमाण प्रागैतिहासिक काल से ही प्राप्त होने लगते हैं। भर्तृहरि ने साहित्य-संगीत-कला से विहीन व्यक्ति को पूँछ-सींग रहित साक्षात् पशु कहा है। इस चयन में संगीत-कला को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।
कवि बनने के लिए ज़रूरी नहीं है कि आप लिखें
‘बीटनिक’, ‘भूखी पीढ़ी’ और ‘अकविता’ क्या है, यह पहचानता हूँ, और क्यों है, यह समझता हूँ। इससे आगे उनपर विचार करना आवश्यक नहीं है। — अज्ञेय बीट कविता ने अमेरिकी साहित्य की भाषा को एक नया संस्कार दि
शारदा सिन्हा : ‘हमरा के कहाँ छोड़ले जाइछी रे गवनवा...’
‘अपने त जाय छी प्रभु देस रे बिदेसवा से, हमरा के...’ पर कहाँ जा पाएँगी इस देस से? काश ‘घोड़ा के लगमवा’ थाम के रोका जा सकता। काश ‘सँईया कलकतवा से’ आ सकते। किसे कहेंगे इस महादेस के मन की आवाज़ अब; ठीक
फूल की थरिया से छिटकती झनकार की तरह थीं शारदा सिन्हा!
कहते हैं फूल की थरिया को लोहे की तीली से गर छेड़ दिया जाए तो जो झनकार निकलेगी वह शारदा सिन्हा की आवाज़ है। कोयल कभी बेसुरा हो सकती है लेकिन वह नहीं! कातिक (कार्तिक) में नए धान का चिउड़ा महकता है। शार
बनारस के गंगा घाट पर होने जा रहा है तीन दिनों का ‘संगीत परिसंवाद’
15, 16 और 17 अक्टूबर, 2024 को वाराणसी के गंगातट पर एक तीन दिवसीय ‘संगीत परिसंवाद’ का आयोजन होने जा रहा है। छह सत्रों में तीन दिनों तक होने वाले इस कार्यक्रम में संगीतज्ञ-विद्वान ऋत्विक सान्याल, राजेश
श्रद्धांजलि : लोकगायक मांगे ख़ान मांगणियार
भूली चूकी करज्यो म्हाने माफ़ म्हारा मनड़ा मेळू रे राजस्थान के मांगणियार समाज का एक स्वर खो गया। मांगे ख़ान दिल्ली के एक सुविख्यात बैंड ‘बाड़मेर बॉयज’ का प्रतिनिधि गायक था। बहुत सुरीला गायक। उसका जन्म
कलाकारों के जीवन की मार्मिक कहानी
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama) 23 अगस्त से 9 सितंबर 2024 के बीच हीरक जयंती नाट्य समारोह आयोजित कर रहा है। यह समारोह एनएसडी रंगमंडल की स्थापना के साठ वर्ष पूरे होन
सिद्धेश्वरी : मौन और ध्वनि की एक सिम्फ़नी
मणि कौल की फ़िल्म ‘सिद्धेश्वरी’ 1989 में बनी एक डॉक्यूमेंट्री है, जो प्रसिद्ध हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका सिद्धेश्वरी देवी के जीवन और कला पर आधारित है। सिद्धेश्वरी देवी भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक म
तौमानी डिबाटे की याद में
ब्रिटिश लेखक और बायोलॉजिस्ट रिचर्ड डॉकिंस (Richard Dawkins) ने एकबारगी कहा था कि वी ऑल आर अफ़्रीकंस। इस कथन के पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण भी उपलब्ध हैं। कभी अमेरिका के कुछ लोग एजेंडा चलाते थे कि जैज़ औ
क्या है क़व्वाली वाया सूफ़ी-संगीत का खुलता दरीचा
हिंदुस्तान में क़व्वाली सिर्फ़ संगीत नहीं है। क़व्वाली इंसान के भीतर एक सँकरे मार्ग का निर्माण करती है, जिसमें एक तरफ़ ख़ुद को डालने पर दूसरी तरफ़ ईश्वर मिलता है। क़व्वाली की विविध विधाएँ हिंदुस्तान म
संगीत, प्यार और दर्द से बुना गया एक उपन्यास
“इतने साल पहले मेरे साथ क्या हुआ था? मुझे प्यार मिले या न मिले, मैं उस शहर में बना नहीं रह सकता था। मैंने ठोकर खाई, मेरा दिमाग़ ठस हो गया, मुझे अपनी हर साँस बोझ लगने लगी। मैंने उससे कह दिया कि मैं जा