Font by Mehr Nastaliq Web

भारंगम का भव्य आरंभ

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली में—भारत रंग महोत्सव के 25वें संस्करण की भव्य शुरुआत ‘रंग संगीत’ आयोजन से हुई। इस साल राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय अपने 65 वर्ष और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की रिपर्टरी कंपनी 60 वर्ष पूरे कर रहा है। इन 60 वर्षों की रंग-यात्रा में अलग-अलग शैलियों के नाटकों में विभिन्न लोक शैलियों से सजे गीत-संगीत की ऐसी लोकप्रियता रही कि दर्शक कई-कई बार केवल गीत-संगीत का आनंद लेने के लिए भी नाटक देखने आते रहे हैं। इस रंग-यात्रा में संगीत प्रधान नाटकों की प्रमुख भूमिका रही है। ‘रंग संगीत’ की प्रस्तुति एनएसडी रंगमंडल के कलाकार और निर्देशक प्रोफ़ेसर अजय कुमार ने की।

संगीत की अपनी एक अलग भाषा है, जो संसार की सभी भाषाओं में सर्वोत्तम है। इस भाषा की एक ख़ास बात है कि इसे बोलने, सुनने और महसूस करने वाले की भी आत्मा झूम उठेगी। ‘रंग संगीत’—संगीत की भाषा का सबसे सरल रूप है, जिसमें लयबद्ध तरीक़े से कहानी सुनाई जाती है; जिसे सुनते हुए हमारा मन स्मृतियों में कहीं गहरे खो जाता है और वर्तमान में कुछ ढूँढ़ने के लिए बेचैन हो उठता है। यह एक साथ अनगिनत लोगों से एकल संवाद कर सकता है।

‘रंग संगीत’ की शुरुआत केरल के शास्त्रीय और लोक परंपराओं से गहरे जुड़े नाट्यविद, रंग निर्देशक, प्रशिक्षक, पद्मभूषण के एन पणिक्कर की रचना नाटक ‘मत्तविलास’ की एक अद्भुत संगीत रचना से हुई। के एन पणिक्कर की रचना के बाद भारतीय रंगमंच के प्रख्यात कलाकार पद्मश्री बी वी कारंत को याद करते हुए, उनके नाट्य संगीत ‘गजाननम् भूतगणादि सेवितम’ को प्रस्तुत किया गया। बी वी कारंत राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक, भारत भवन रंगमंडल, भोपाल के संस्थापक निदेशक, कर्नाटक रंगायन (मैसूर) के संस्थापक निदेशक रहे। रंगमंच के क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए, उन्हें संगीत नाटक अकादमी, कालिदास सम्मान, अमृतलाल नागर आदि कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। तुग़लक़, छोटे सैयद-बड़े सैयद, बरनम वन, अग्नि और बरखा, अनामदास का पोथा जैसे रंगमंडल के चर्चित नाटकों को उन्होंने ही अपने संगीत से सजाया था। गजानन की स्तुति के बाद, ‘नाव भी है तैयार मुसाफ़िर’ गीत की प्रस्तुति हुई, जो मज़दूरों के संघर्ष की गाथा है। 

अपने समय में रंग-संगीत में एक अलग तरह के प्रयोग करने के लिए विख्यात पद्मभूषण हबीब तनवीर, जिन्होंने रंगमंडल के लिए 1989 में मैक्सिम गोर्की के नाटक ‘दुश्मन’ का निर्देशन किया और संगीत भी तैयार किया। हबीब साहब भारतीय रंगमंच में लोक कलाओं और स्थानीय बोलियों की जड़ों को मजबूती से स्थापित करने वाले नाटककार, रंग निर्देशक, कवि और अभिनेता रहे हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को रंग प्रशिक्षण देकर ‘चरणदास चोर’ नाटक तैयार किया, जिसका मंचन दुनिया के विभिन्न देशों में किया गया है।

रंगमंच की दुनिया में सरल, सहज, लोकप्रिय संगीत रचनाओं के लिए पहचाने जाने वाले पंचानन पाठक का रंगमंडल के साथ लंबा जुड़ाव रहा है। रंगमंडल की स्थापना के शुरुआती वर्षों में कई महत्त्वपूर्ण नाटकों जैसे ‘लहरों के राजहंस’, ‘अंधायुग’, ‘द फ़ायर’ आदि का संगीत उन्होंने तैयार किया। तक़रीबन 30 वर्षों बाद 1996 में पंचानन पाठक ने रंगमंडल के चर्चित नाटक ‘थैंक्यू बाबा लोचनदास’ का लोकप्रिय संगीत तैयार किया। ‘पाँच रुपइया दे दे रे बालम...मेला देखन जाऊँगी’ की एकल प्रस्तुति अभिनेत्री पूजा के द्वारा बड़े ही सुंदर तरीक़े से किया गया।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जन्मशती के अवसर पर रंगमंडल ने उनकी कविताओं की सांगीतिक प्रस्तुति की थी, जिसमें संगीत रचना लोकेंद्र त्रिवेदी द्वारा किया गया था। लोकेंद्र त्रिवेदी 1977 के एनएसडी स्नातक और पुणे फ़िल्म संस्थान से भी अभिनय में पोस्ट ग्रेजुएट हैं। उन्होंने लोक नाट्य— नाच, नौटंकी, करियाला, भांडपाथेर, पहाड़ी रामलीला, ख्याल, स्वांग, भवाई, तमाशा, आल्हा रुदल, पाला गायन, अंकिया भावना जैसे उनके पारंपरिक लोक और शास्त्रीय रंग शैलियों पर उन्हीं क्षेत्रों में घूमकर प्रस्तुतिकरण और प्रदर्शन में आधुनिक प्रयोगों से जुड़े अहम काम को किया है। उन्होंने  रा ना वि रंगमंडल के लिए आफ़ताब फैजाबादी, कभी न छोड़ें खेत, विरासत, नौकर शैतान मालिक हैरान, मित्रों मरजानी जैसे कई नाटकों का संगीत तैयार किया है। ‘रंग संगीत’ का संयोजन भी लोकेंद्र त्रिवेदी के द्वारा किया गया। ‘पथ दीप जले...’ रसिकलाल पारिख द्वारा रचित नाटक ‘शर्विलक’ का एक गीत है। जिसकी प्रस्तुति मोहक थी।

1990 में रा ना वि से निर्देशन में विशेषज्ञता प्राप्त संजय उपाध्याय देश के प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक और संगीत सर्जक हैं। ये देशज रंगकर्म और विशेषकर लोक संगीत के नवाचारी प्रयोगों के लिए जाने जाते हैं। ऋषिकेश सुलभ लिखित, देवेंद्र राज अंकुर द्वारा निर्देशित और संजय उपाध्याय के संगीत से सजी बटोही नाटक का गीत ‘भादो रैन गहन अंधियारा...’ दर्शकों के आँखों को नम कर देने वाली थी।

‘रंग संगीत’ का समापन नाट्यशास्त्र की परंपरा के अनुसार भरत वाक्य से हुआ। जिसमें रीता गांगुली की संगीत रचना ‘ओ नट देवता...’ को दर्शक और कलाकारों ने एक साथ मिलकर गाया। रीता गांगुली रा ना वि के साथ 1968 में अभिनय संकाय के अध्यापक रूप में जुड़ीं। जहाँ उन्होंने कई सफ़ल नाटक का निर्देशन किया।

‘रंग संगीत’ के पूर्व भारत रंग महोत्सव में इस बार के रंगदूत राजपाल यादव सहित अभिनेत्री मीता वशिष्ठ और गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया गया। दीप प्रज्वलन संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, फ़िल्म अभिनेता और सांसद रवि किशन, ज्वाइंट सेक्रेट्री उमा नंदूरी, रा ना वि के वाइस चेयरमैन भरत गुप्त, निदेशक चितरंजन त्रिपाठी के द्वारा किया गया।

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन उदास है। शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है। शांतिनिकेतन का शांत वातावरण अशांत

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

Husayn remarked ironically, “A nation whose most notable manifestations are tombs and corpses!” Pointing to one of the pyramids, he continued: “Look at all that wasted effort.” Kamal replied enthusi

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी कहा जा रहा है। कितनी ही बार स्कूलों में, युवाओं के बीच में या फिर कह लें कि तथा

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना बड़ा कि अपने समय से लेकर आज तक वे कई कला-विधाओं के माध्यम से जनमानस के बीच रहे है

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में रखने से भी झिझकते हैं, जैसे कि मैं कोई बेढब कुत्ता हूँ; जो उनके घर में गंदे पं

बेला लेटेस्ट