सबसे सुंदर होते हैं वे चुम्बन जो देह से आत्मा तक का सफ़र करते हैं
आसित आदित्य
11 जून 2024

अंतिम यात्रा लौट आने के लिए नहीं होती। जाने क्या है उस नगर जो जाने वाला आता ही नहीं! (आना चाहता है या नहीं?)
सब जानते हुए भी—उसको गए काफ़ी वक़्त गुज़रा पर— उसकी चीज़ें जहाँ थीं, वहाँ से अब तक नहीं हटाईं।
~•~
किन गुफाओं में, किन चोटियों पर, कहाँ है वो गणितज्ञ जो मुझे वो सूत्र दे जिससे कर सकूँ गणना : जो नहीं लौटने वाला उसके लौट आने की झूठी उम्मीद की कालावधि।
~•~
कमरे में फैली उसकी चीज़ें अब कमरे का गला घोटती हैं। कमरा मेरा गला घोटता है।
मुझे मेरे कमरे को बचाना है, ताकि मैं किसी और का गला न घोटूँ।
~•~
जब वो थी मैंने बाज़ दफ़ा उसका न होना चाहा। अब वो नहीं है, मैं उसका होना चाहता हूँ।
क्या जीवन इस चक्रीय चू*** से अधिक कुछ था/है/होगा?
~•~
जाने के बाद की रिक्तता होने से कहीं अधिक स्थान घेरती है।
~•~
प्रतीक्षा धीरे-धीरे मर जाती हैं।
यह धीरे-धीरे बहुत धीरे होता है।
~•~
सबसे सुंदर होते हैं वे चुम्बन जो देह से आत्मा तक का सफ़र करते हैं।
~•~
मेरी आत्मा पर उसके लाड के दिए घाव हैं और वे सड़ रहे हैं। उन्हें सड़ने दो, दुनियावालो!
कोई तीमारदार नहीं, न ही मुझे तीमारदारी की ज़रूरत है। कल को वे कैंसर बनेंगे; उन्हें कैंसर बनने दो।
अथाह दुःख के सागर में भी कितने हैं ख़ुशी के मोती! एक यह भी कि अब तक कैंसर का उपचार संभव नहीं।
~•~
जिस दल के ख़िलाफ़ व्योमेश शुक्ल की प्रेमिका-दोस्त-बहन का पहला वोट पड़ा था, उसके एक नेता (शायद वही समूचा दल है अब!) का बयान याद है आपको : आपदा में अवसर।
देर रात गए यह लिखकर मैं वही कर रहा हूँ।
~•~
एकबारगी बनिया ग़लती कर सकता है, पर कलाकार नहीं।
~•~
किसी के आने को, जाने को, होने को, न होने को, सब कुछ को भुना सकता है कलाकार।
~•~
दुनिया को कलाकारों से सावधान रहना चाहिए।
~•~
कलाकार को किसी से भी सावधान रहने की ज़रूरत नहीं। इस दहकते सत्य से भी नहीं कि सब कुछ रीत जाता है; कि प्रत्येक आदि का अंत है; कि आना वो पहली सीढ़ी है जो जाने के छत तक जाती है।
~•~
अंत नया आरंभ है।
~•~
उसके न होने की रिक्तता भर जाएगी (भरनी नहीं पड़ेगी)। वह न होगी, उसकी जगह कुछ और होगा।
उसकी स्मृतियों पर वक़्त की हथेलियों की मिट्टी होगी। उसके लौट आने के उम्मीद की लाश राख होगी। प्रतिक्षाएँ खुली आँखों की अंतड़ियों में तोड़ रही होंगी दम।
~•~
लेकिन हू-ब-हू वैसा कभी नहीं होता जैसा सोचा-कहा-लिखा या सुना जाता है। सो ठीक यही नहीं होगा।
युगों उपरांत भी उसकी रिक्तता किसी कोने में दुबकी बैठी रह जाएगी। उसकी स्मृतियाँ ढीठ बच्चों की तरह भाग जाया करेंगी मेरा दरवाज़ा खटखटा। उसका न होना जब-तब दूर कहीं हवा में अपनी उंगलियों से मेरे होने पर प्रश्नचिह्न बनाता रहेगा।
~•~
किसी अन्य लोक में नमकीन बिस्किट कुतरते हुए, वह देखेगी मुझे जीते; और मेरी ही तरह एक रोज़ बुझ जाएगी वह भी कि मुझे मरने का अधिकार नहीं... कि मैं जीने के लिए शापित हूँ।
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
14 अप्रैल 2025
इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो!
“आप प्रयागराज में रहते हैं?” “नहीं, इलाहाबाद में।” प्रयागराज कहते ही मेरी ज़बान लड़खड़ा जाती है, अगर मैं बोलने की कोशिश भी करता हूँ तो दिल रोकने लगता है कि ऐसा क्यों कर रहा है तू भाई! ऐसा नहीं
08 अप्रैल 2025
कथ्य-शिल्प : दो बिछड़े भाइयों की दास्तान
शिल्प और कथ्य जुड़वाँ भाई थे! शिल्प और कथ्य के माता-पिता कोरोना के क्रूर काल के ग्रास बन चुके थे। दोनों भाई बहुत प्रेम से रहते थे। एक झाड़ू लगाता था एक पोंछा। एक दाल बनाता था तो दूसरा रोटी। इसी तर
16 अप्रैल 2025
कहानी : चोट
बुधवार की बात है, अनिरुद्ध जाँच समिति के समक्ष उपस्थित होने का इंतज़ार कर रहा था। चौथी मंजिल पर जहाँ वह बैठा था, उसके ठीक सामने पारदर्शी शीशे की दीवार थी। दफ़्तर की यह दीवार इतनी साफ़-शफ़्फ़ाक थी कि
27 अप्रैल 2025
रविवासरीय : 3.0 : इन पंक्तियों के लेखक का ‘मैं’
• विषयक—‘‘इसमें बहुत कुछ समा सकता है।’’ इस सिलसिले की शुरुआत इस पतित-विपथित वाक्य से हुई। इसके बाद सब कुछ वाहवाही और तबाही की तरफ़ ले जाने वाला था। • एक बिंदु भर समझे गए विवेक को और बिंदु दिए गए
12 अप्रैल 2025
भारतीय विज्ञान संस्थान : एक यात्रा, एक दृष्टि
दिल्ली की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी के बीच देश-काल परिवर्तन की तीव्र इच्छा मुझे बेंगलुरु की ओर खींच लाई। राजधानी की ठंडी सुबह में, जब मैंने इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से यात्रा शुरू की, तब मन क