Font by Mehr Nastaliq Web

दिल्ली के धड़कते दिल से गुज़रते हुए

किसी शहर का मुस्लिम इलाक़ा उस शहर की धड़कती हुई जगहों में से एक होता है, जहाँ आला दर्ज़े के शायरों, बावरचियों, हकीमों, दानिशमंदों, इबादतगुज़ारों से लेकर हर तरह के काम-धंधे वाले लोग मिलेंगे। चावड़ी बाज़ार मेट्रो से लाल कुएँ जाती सड़क पर हकीम सुहैब के यहाँ से हमने हमदर्द का ‘ख़मीरा गावज़बान सादा’ लिया जो दिल और दिमाग़ की ताक़त के लिए मुफ़ीद है। मुस्कराते चेहरे वाले हक़ीम साहब सभी से दिल खोलकर बात करते हैं। उनके यहाँ दवाइयों पर दस फ़ीसद की रियायत मिलती है। 

हम रिक्शों से जातीं बुर्क़ापोश औरतों, ठेलों, टू-वीलर और पैदल चलने वाले लोगों के बीच से आगे बढ़ते हैं, जहाँ हमदर्द के बड़े से अस्पताल, जो मग़रिब के वक़्त बंद हो चुका है—के सामने गली क़ासिमजान में मुड़ जाते हैं। यहीं संगम कबाब की दुकान है जो अब खुलने की तैयारी में है। इसके मालिक इमरान कुरेशी मग़रिब से लेकर रात ग्यारह बजे तक दुकान लगाते हैं। गली क़ासिमजान, ग़ालिब की हवेली से होते हुए बल्लीमारान की चश्मा मार्केट पर ख़त्म होती है। मार्केट में चूड़ियों की भी कुछ दुकानें हैं। ब्लू कट लेंस यहाँ दो-ढाई सौ में मिल जाएगा और फ़्रेम भी इसी क़ीमत में। 

चश्मे का ऑर्डर देकर आप नमाज़ अदा कर लें, किसी बुज़ुर्ग से आलिमाना गुफ़्तगू कर लें, मुक़ीम की बिरयानी (दो सौ रुपए किलो) खा लें, ख़ुशदिल की चाय (तेरह रुपए) पी लें या बेकरी से बिस्किट ख़रीद लें। 

ख़ुशदिल की चाय बनाने का तरीक़ा अनोखा है। वह काँच के गिलास में पहले चीनी डालेंगे, फिर खौलकर गाढ़ा हो गया दूध। उसके ऊपर चायपत्ती का पानी और सबसे ऊपर दूध की मलाई। दूध वह सामने दूधिये से लेते हैं और चायपत्ती थोक में बोरी-बोरी। एक दस-बारह साल का लड़का चाय सर्व करता है, महीने में पाँच हज़ार की तनख़्वाह के एवज़। उससे बड़ी उम्र का लड़का बिना थके चाय बनाता रहता है और इस गर्मी में ठंडा पानी पीता रहता है। 

ग़ालिब की हवेली भी शाम छ बजे बंद हो जाती है, हालाँकि वहाँ अब कुछ देखने जैसी चीज़ नहीं है, क्योंकि उसके बड़े हिस्से में टूर-ट्रैवल्ज़ की दुकान खुल गई है।

लौटते हुए हम कबाब की दुकान से कबाब खाते हैं। दाम हैं 15 रुपए के एक। हम एक पाव क़ीमा भी ले लेते हैं। कबाब जामा मस्जिद के कुरेशी कबाब से साइज़ में आधे हैं, लेकिन लज़्ज़तदार हैं। अच्छे से सिंके हुए। प्याज़, कटी हुई हरी मिर्च और चटनी उसकी लज़्ज़त दोबाला कर देती है।
 
रात हो रही है, लेकिन लोग अभी भी इधर से उधर जा रहे हैं। इनमें औरतें, मर्द और मेहनतकश मज़दूर सभी हैं। आम की ठेलियाँ लगी हैं। दिन भर के थके-हारे लोग अब आराम करने लगे हैं। हम मेट्रो के क़रीब सड़क को झाड़ू से साफ़ करते एक ठेले वाले भैया से पूछते हैं कि क्या हम यहाँ फ़ुटपाथ पर रात गुज़ार सकते हैं।

“आपका मोबाइल ले जाएगा लोग।”

“फिर कहाँ जाएँ हम?”

“आप जामा मस्ज़िद चले जाइए, वहाँ सो जाइए, यहाँ रात में आपका बैग भी छिना जाएगा।”

हम जिगर का ये शेर पढ़ते हुए मेट्रो टेसन में दाख़िल होते हैं—

आज न जाने राज़ ये क्या है
हिज्र की रात और इतनी रौशन

सिक्योरिटी से आगे, घुसने वाले गेट पर एक आदमी कार्ड लेकर खड़ा है। 8 बजकर 59 मिनट हुए हैं। जैसे ही नौ बजेंगे, मेट्रो कार्ड की रियायत दस से बढ़कर बीस फ़ीसदी हो जाएगी।

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

19 नवम्बर 2024

उर्फ़ी जावेद के सामने हमारी हैसियत

19 नवम्बर 2024

उर्फ़ी जावेद के सामने हमारी हैसियत

हिंदी-साहित्य-संसार में गोष्ठी-संगोष्ठी-समारोह-कार्यक्रम-आयोजन-उत्सव-मूर्खताएँ बग़ैर कोई अंतराल लिए संभव होने को बाध्य हैं। मुझे याद पड़ता है कि एक प्रोफ़ेसर-सज्जन ने अपने जन्मदिन पर अपने शोधार्थी से

27 नवम्बर 2024

क्यों हताश कर रही हैं स्त्री आलोचक?

27 नवम्बर 2024

क्यों हताश कर रही हैं स्त्री आलोचक?

लेख से पूर्व  रोहिणी अग्रवाल की आलोचना की मैं क़ायल हूँ। उनके लिए बहुत सम्मान है, हालाँकि उनसे कई वैचारिक मतभेद हैं। ‘हिन्दवी’ के विशेष कार्यक्रम ‘संगत’ में अंजुम शर्मा को दिया गया उनका साक्षात्कार

10 नवम्बर 2024

कवि बनने के लिए ज़रूरी नहीं है कि आप लिखें

10 नवम्बर 2024

कवि बनने के लिए ज़रूरी नहीं है कि आप लिखें

‘बीटनिक’, ‘भूखी पीढ़ी’ और ‘अकविता’ क्या है, यह पहचानता हूँ, और क्यों है, यह समझता हूँ। इससे आगे उनपर विचार करना आवश्यक नहीं है। — अज्ञेय बीट कविता ने अमेरिकी साहित्य की भाषा को एक नया संस्कार दि

09 नवम्बर 2024

बंजारे की चिट्ठियाँ पढ़ने का अनुभव

09 नवम्बर 2024

बंजारे की चिट्ठियाँ पढ़ने का अनुभव

पिछले हफ़्ते मैंने सुमेर की डायरी ‘बंजारे की चिट्ठियाँ’ पढ़ी। इसे पढ़ने में दो दिन लगे, हालाँकि एक दिन में भी पढ़ी जा सकती है। जो किताब मुझे पसंद आती है, मैं नहीं चाहती उसे जल्दी पढ़कर ख़त्म कर दूँ; इसलिए

24 नवम्बर 2024

भाषाई मुहावरे को मानवीय मुहावरे में बदलने का हुनर

24 नवम्बर 2024

भाषाई मुहावरे को मानवीय मुहावरे में बदलने का हुनर

दस साल बाद 2024 में प्रकाशित नया-नवेला कविता-संग्रह ‘नदी का मर्सिया तो पानी ही गाएगा’ (हिन्द युग्म प्रकाशन) केशव तिवारी का चौथा काव्य-संग्रह है। साहित्य की तमाम ख़ूबियों में से एक ख़ूबी यह भी है कि व

बेला लेटेस्ट

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए