हिंदी साहित्य जगत का सिंहावलोकन
आज से उन्नीस वर्ष पहले, जब कि हिंदी साहित्य सम्मेलन का जन्म नहीं हुआ था, और उसके जन्म के पश्चात् भी कई वर्षों तर अपनी मातृ-भाषा का स्वतंत्र अस्तित्व सिद्ध करने के लिए, हमें पग-पग पर न केवल संस्कृत, प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, सौराष्ट्री की छान-बीन करते
गणेश शंकर विद्यार्थी
काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था
तदैजति तन्नैजति-ईशावास्योपनिषद् आत्म-बोध और जगद्-बोध के नीचे ज्ञानियों ने गहरी खाई खोदी पर हृदय ने कभी उसकी परवा न की; भावना दोनों की एक ही मानकर चलती रही। इस दृश्य जगत् के बीच जिस आनंद-मंगल की विभूति का साक्षात्कार होता रहा, उसी के स्वरूप की नित्य और