'चढ़ा मंसूर सूली पर पुकारा इश्क़-बाज़ों को, व उसके बाम का ज़ीना है आए जिसका जी चाहे।' ***** 'शोर-ए-मंसूर अज़, कुजा वो दार-ए-मंसूर अज़ कुजा, ख़ुद ज़दी बांगे—अनलहक़ बरसर-ए-दार
अरबी फ़ारसी के पारदर्शी विद्वान्, उर्दू कविता को नए नेचुरल साँचे में ढालने वाले, उर्दू साहित्य के आदर्श आचार्य और सुप्रसिद्ध कवि शमसुल-उल्मा मौलाना मुहम्मद हुसैन आज़ाद जिस्म की क़ैद से आज़ाद होकर 22 जनवरी (सन् 1610 ई०) को स्वर्ग सिधार गए!! आज़ाद
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जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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