विश्वास पर दोहे
विश्वास या भरोसे में
आश्वस्ति, आसरे और आशा का भाव निहित होता है। ये मानवीय-जीवन के संघर्षों से संबद्ध मूल भाव है और इसलिए सब कुछ की पूँजी भी है। इस चयन में इसी भरोसे के बचने-टूटने के वितान रचती कविताओं का संकलन किया गया है।
जब आँखों से देख ली
गंगा तिरती लाश।
भीतर भीतर डिग गया
जन जन का विश्वास॥