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सेवक पर उद्धरण

सेवक यानी सेवा करने

वाला। भक्तिधारा में इसका विशिष्ट अर्थ भक्त है। इस चयन में सेवक को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

जिसका धन मात्र धन के लिए है, वह धन के तत्त्व को नहीं जानता। जैसे सेवक वन में गायों की रक्षा करता है, उसी प्रकार वह भी दूसरे के लिए धन का रक्षक मात्र है।

वेदव्यास
  • संबंधित विषय : धन

भगवान् का सेवक होना कुछ चीज़ है, भगवान् का दास होना उससे भी बड़ी चीज़ है।

श्री अरविंद

उदार जन का सेवक भी उदार ही होता है।

भास

चेतना रोकती थी, पर उपचेतना ठेलती थी। सेवक स्वामी पर हावी था।

प्रेमचंद

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