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वाचिक : परंपरा का नवोन्मेष

‘रेख़्ता फ़ाउंडेशन’ का उपक्रम ‘हिन्दवी’—हिंदी-साहित्य-संस्कृति-कला-संसार को समर्पित अपने वार्षिकोत्सव—‘हिन्दवी उत्सव’ के पाँचवें संस्करण का आयोजन करने जा रहा है। यह आयोजन 27 जुलाई 2025, रविवार को नई दिल्ली के सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम में हो रहा है। 

‘हिन्दवी उत्सव’ ने अपने गत संस्करणों में सौंदर्य, सुरुचि, वैविध्य, गंभीरता और गरिमा के सशक्त मानक स्थापित किए हैं। इस वर्ष का आयोजन भी साहित्य-प्रेमियों के लिए साहित्यिक रंगों की बहुरंगी छाया में एक विशेष रंग-ढंग लिए उपस्थित होगा। इस कड़ी में एक विशेष आयोजन है—‘वाचिक’ समूह की संगीतमय कविता प्रस्तुति। 

‘वाचिक’ शब्द की उत्पत्ति के बारे में देखें तो इसकी उत्पत्ति संस्कृत के ‘वच’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है—‘बोलना’ या कहा हुआ। वाचिक शब्द का प्रयोग ‘साहित्य की प्रस्तुति’ या ‘नाट्य-कथन के उद्बोधन’ के रूप में होता आया है। इस तरह ‘वाचिक’ शब्द का अर्थ ‘वाणी के प्रयोग से अभिव्यक्त किया हुआ’ कहा जा सकता है। वाणी यानी वाक् ही भारतीय साहित्य-परंपरा में वह प्रेरणा मानी गई है, जिससे कविता जन्मती है। ‘ऋग्वेद’ का कवि कहता भी है : ‘‘वाक् ही आत्मा और मन के स्तरों से उद्धृत होकर काव्य में अभिव्यक्त होता है।’’

वाक् ही वह शक्ति है जो अपने सूक्ष्मतम से लेकर स्थूलतम रूप में अभिव्यक्त हुई, समस्त प्राणियों में अनन्य रूप में व्याप्त है। यह अभिव्यंजना का सामर्थ्य है। इसलिए कहा भी गया है—‘वागेव विश्वा भुवनानि जज्ञे’ यानी वाक् ही विश्व की जननी है।

इस ‘वाचिक’ शब्द की ओर देखें तो हमें मालूम होता है कि यह हमारी साहित्य-कला की आर्ष-परंपरा का एक महनीय स्वरूप है। प्राचीन समय में काव्य की छंद-बद्ध रचना, उसका गायन, चरित्र-गायन तथा नाट्य-प्रस्तुतियों में इस संगीतबद्धता की एक सुदीर्घ परंपरा भी रही है। आदिकवि वाल्मीकि के संदर्भ में यह प्रसंग सर्वविदित ही है कि ‘रामायण’ की रचना की शुरुआत के प्रसंगों में ‘मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः’—कहने वाले वाल्मीकि भी आश्चर्य से भरे बिना न रह गए कि क्रौंच पक्षी को वधित होता देख, करुणा से निकला श्लोक—‘छंद-बद्ध’ होकर ही उनकी वाणी द्वारा अभिव्यक्त हुआ। 

कहना न होगा कि आज की हिंदी कविता भले ही छंद-प्रबंध से दूर हुई हो, लेकिन छंद की उपयोगिता और उसके महत्त्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। काव्य को सामान्य जन तक सुरुचिपूर्ण रूप में प्रसारित करने में छंद-लय-ताल का विशेष महत्त्व रहा है। सामान्य जन को रससिक्त करने में कविता गेय रूप में ही सबसे ज़्यादा स्वीकृत होती आई है। वर्तमान समय में इस परंपरा के नवोन्मेष स्वरूप के तौर पर गाहे-ब-गाहे कई प्रयोग दिखाई देते हैं। इसी क्रम में एक नाम ‘स्वरंग फ़ाउंडेशन’ द्वारा हिंदी कविताओं, गीतों और ग़ज़ल की संगीतमय प्रस्तुति ‘वाचिक’ का भी है। ‘वाचिक’ ने उस पूरी परंपरा को इधर दृश्य में रखने का कार्य किया है। कविता के प्रारंभ और उसके प्रसार तक शब्दों के लय और सुरों से एक विशेष संबंध रहा है। ‘कथा-गायन-वाचन’ की सुनने-सुनाने की एक पुरानी संस्कृति रही आई है। ‘वाचिक’ उसी परंपरा और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है—कविताओं की संगीतमय प्रस्तुति के रूप में। इस अर्थ में ‘वाचिक’ का प्रयास, परंपरा और काव्य को अधिक सुगम, सुरुचिपूर्ण और सुग्राह्य बनाने वाला है। यह उस आर्ष-परंपरा का ही सुरुचिपूर्ण और अद्यतन स्वरूप है, जो इस समय के साहित्य-कला को नीरसता से बचाने और रससिक्त बनाने हेतु तत्पर है।

‘हिन्दवी उत्सव’ में ‘वाचिक’-दल कुछ इस प्रकार दर्शकों-श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत होगा : 

गायन : 
शशांक शेखर | अजय कुमार

सारंगी वादन एवं गायन : 
अनिल मिश्रा

हरमोनियम वादन एवं गायन : 
राजेश पाठक

ढोलक / तबला / प्रकासन : 
उमाशंकर सिंह | शैलेंद्र चौहान | मुस्तफ़ा हुसैन

गिटार-प्लेयर : 
सैंडी

गायन : 
पूजा गुप्ता | पूर्वी मिश्रा



‘वाचिक’ के कुछ कलाकारों का परिचय :

शशांक शेखर



भारतीय संगीत-परंपरा के विभिन्न स्वरूपों—शास्त्रीय संगीत, लोक-गायन, सूफ़ी गायन और लाइट म्यूजिक से सुपरिचित शशांक शेखर सेमी-क्लासिकल, भजन, ग़ज़ल-गायन के इलाक़े में सुप्रसिद्ध हैं। संगीत, स्पोर्ट्स और संस्कृति-लेखन के साथ ही वह मीडिया-प्रोडक्शन से लगभग तीस वर्षों तक जुड़े रहे हैं। थिएटर और पेंटिंग-प्रदर्शनियों में बतौर संगीत-आयोजक उनका अनुभव रहा है।

वर्ष 1995 में ‘मातृ उद्बोधन संस्थान’ पटना द्वारा ‘पंडित रामेश्वर पाठक सम्मान’, 1985 में पटना विश्वविद्यालय द्वारा ‘Prestigious College Blue Award’ और तेलांगाना सरकार द्वारा वर्ष 2015 में ‘आफ़ताब-ए-ग़ज़ल’ से वह सम्मानित हैं। इसके अलावा उन्हें अन्य कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है जिनमें ‘राजगीर महोत्सव-2015’ में बिहार सरकार द्वारा, चेन्नई में पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा तथा सुपर स्टार शरथ कुमार द्वारा वर्ष 2018, हिंदी अकादेमी, सलालाह (ओमान) द्वारा वर्ष 2013 प्रमुख हैं। उनके द्वारा दी गईं प्रमुख प्रस्तुतियों में वर्ष 2014 में ‘संगीत नाटक अकादेमी’ (नई दिल्ली) के लिए आर्काइव रिकॉर्डिंग, भिखारी ठाकुर द्वारा रचित लोकनाट्य ‘बिदेसिया’ आदि मुख्य हैं। इसके अलावा उनके द्वारा अब तक गीत-संगीत की दुनिया के महत्त्वपूर्ण लोगों के साथ और एकल रूप में 400 से भी ज़्यादा संगीत-प्रस्तुतियाँ, 200 से ज़्यादा ग़ज़ल और भजन की कम्पोजीशन तैयार की गई हैं।

अजय कुमार



‘पटना विश्वविद्यालय’ से स्नातक की उपाधि और ‘पटना निर्माण कला मंच’ से 1989 में रंगमंच की शिक्षा लेने वाले अजय कुमार ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली से अभिनय में विशेषज्ञता हासिल की। उन्होंने अनेक समादृत रंगकर्मियों के साथ काम करते हुए एक बहुमुखी अभिनेता, निर्देशक, संगीतकार और एक लेखक के रूप में ख़ुद को निर्मित किया है। 50 से अधिक नाटकों, कविताओं, कहानियों का बतौर रंगकर्मी प्रतिनिधित्व करने वाले अजय कुमार के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में ‘टिम सपल’ द्वारा निर्देशित शेक्सपियर की ‘ए मिडसमर नाइट्स ड्रीम’ शामिल है। नाट्य-संगीत की दुनिया के महनीय व्यक्तित्वों से नाट्य-संगीत की शिक्षा लेने के बाद, विश्व स्तर पर अनेक रंगकर्मियों के समूह के साथ काम करते हुए वह संगीत निर्देशक के रूप में 50 से अधिक नाटकों से जुड़े रहे हैं। वर्ष 2008 में इन्हें नाट्य संगीत में इनके योगदान के लिए संगीत नाटक अकादेमी द्वारा ‘उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ युवा पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। वर्तमान में वह राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के संकाय में वाइस एंड स्पीच एवं थिएटर म्यूजिक के एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं।

अनिल मिश्रा और राजेश पाठक



‘रंग-संगीत की युगल-प्रस्तुति’ के रूप में वर्षों से सक्रिय अनिल मिश्रा और राजेश कुमार पाठक झारखंड से संबद्ध हैं। पंडित काशीनाथ शर्मा से संगीत की प्रारंभिक शिक्षा के बाद, दोनों ने सारंगी और तबला में स्नातक तथा गायन में स्नातकोत्तर की उपाधि अर्जित की। ‘साहित्य कला परिषद्, (नई दिल्ली) के रंगमंडल में बतौर संगीतकार, संगीत-निर्देशक एवं अभिनेता के रूप में इनका योगदान रहा है। इस युगल ने रंग-संगीत की दुनिया के महनीय निदेशकों के साथ नाट्य-संगीत में योगदान दिया है। इन्होंने कई चैनल्स और नाटकों को मिलाकर अब तक 500 से भी ज़्यादा नाटकों के लिए संगीत तैयार किया है, जिनमें कुछ अति महत्त्वपूर्ण और प्रसिद्ध नाटक भी हैं।

अनिल मिश्रा और राजेश पाठक ‘बिहार  सम्मान’, ‘रंग विशारद सम्मान’, ‘10वाँ और 11वाँ गीत सम्राट सम्मान’ से सम्म्मानित हैं।

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‘हिन्दवी उत्सव’ से जुड़ी जानकारियों के लिए यहाँ देखिए : हिन्दवी उत्सव-2025

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