आलो-आँधारि*
मैं अब अपने किराए के घर में थी। सब समय सोचती रहती कि काम न मिला तो बच्चों को क्या खिलाऊँगी, कैसे उन्हें पालूँगी-पोसूँगी! मैं स्वयं एक घर से दूसरे घर काम खोजने जाती और दूसरों से भी काम जुटाने के लिए कहती। मुझे यह चिंता भी थी कि महीना ख़त्म होने पर घर का