‘द लंचबॉक्स’ : अनिश्चित काल के लिए स्थगित इच्छाओं से भरा जीवन
शशांक मिश्र
02 जनवरी 2025

जीवन देर से शुरू होता है—शायद समय लगाकर उपजे शोक के गहरे कहीं बहुत नीचे धँसने के बाद। जब सुख सरसराहट के साथ गुज़र जाए तो बाद की रिक्तता दुख से ज़्यादा आवाज़ करती है।
साल 2013 में आई फ़िल्म ‘द लंचबॉक्स’ (The Lunchbox) में इला के किरदार का जीवन इसी रिक्तता की झाँकी है। इला यानी अपनी माँ की इकलौती बेटी, एक बेटी की माँ, पत्नी और देशपांडे आंटी की सबसे ज़रूरी पड़ोसी।
कई बार समूचा सुख बिना किसी मानी के आपके जीवन में प्रवेश करता है। यह बिना पूछे आगे के कई सुखों को आपके लिए सुरक्षित कर जाता है। इला के जीवन में—नींबू जितने आकार का, ब्रह्मांड बराबर सुख टिफ़िन में मुंबई की लोकल के सहारे किलोमीटर नापते-नापते पहुँचा। उस सुख ने उसे वह गर्माहट दी कि इला ने आड़े आ रहे वर्तमान पर सवाल दागे—कि यह ही क्यों, और कुछ क्यों नहीं। प्रेम क्यों नहीं। चाह क्यों नहीं। सुख की छाया में इला जब ‘डियर इला’ हुईं तो देशपांडे आंटी से बोलकर ‘साजन’ फ़िल्म के गाने बजवाए।
अगर ज़ेहन को मालूम रहे कि यही क्षण अंतिम हो सकता है तो इंसान प्रेम, दुलार और स्नेह की ताबीज़ बनाकर पहने—लेकिन ऐसा हो कहाँ पाता है!
जीवन पड़ावों में बँटा है—यही पीड़ा, यही सुख है।
इला का जीवन—दिनचर्या के कामों से भरे पूरे दिन में—हमेशा कगार पर रहा। ऐसी जगह जहाँ बहुत कुछ घटने की उधेड़बुन नहीं, सिर्फ़ होने को देखते रहना नियत है। वह जीवन जहाँ टीस है, जहाँ इच्छाएँ अनिश्चित काल के लिए स्थगित ही कर दी गई हैं। इला ने हमें वो कशिश दी है जो ‘चाहने’ और ‘हो जाने’ की दो समानांतर रेखाओं को अनंत पर भी नहीं मिलने देती।
बीच फ़िल्म में एक जगह सीन है :
खाने का डब्बा ऑफ़िस से आ गया है और चिट्ठी भी। इला ने अपने लिए चाय बनाई है। कप में ऊपर तक भरी चाय। वह सहूलत के साथ बच-बचाकर आती हैं। आराम मुद्रा में कुर्सी पर बैठती हैं। मुड़े हुए काग़ज़ को सही करती हैं। चिट्ठी पढ़ते समय चाय हाथ से उठाती हैं लेकिन पीती नहीं हैं। दरअस्ल, चिट्ठी में साजन फ़र्नांडिस ने अपनी मर चुकी पत्नी और उनके पसंदीदा टीवी शोज़ का ज़िक्र किया था।
इला ने अपने शुष्क वर्तमान में किसी दूसरे के अतीत को इतनी ईमानदार तरजीह दी। इला रिल्के के कहे अनुसार अपने साथ सबकुछ होने देती हैं लेकिन एक जगह साजन फ़र्नांडिस के नाम चिट्ठी में लिखती हैं—
“देशपांडे अंकल पंखे को घूरते रहते हैं, हसबैंड फ़ोन को—जैसे और कुछ है ही नहीं। शायद और कुछ है ही नहीं। तो किसलिए जिएँ।”
एक ऐसा जीवन जिसका हर सिरा इतना महीन और धारदार है कि उलझ जाने पर पकड़ने की हिम्मत ही न हो। निरुत्तर होने कि वह स्थिति जो बहुत पुरानी दोस्तियों, रिश्तों के गाँठ सुलझाने की बजाय कैंची से काट देने पर पैदा होती है। आपके पास नहीं है हर ‘क्या हुआ’ का जवाब। आपने ऐसा होना चुना नहीं है। यह मौन पसंदीदा नहीं।
इला उस पूरे जनसमूह की प्रतिनिधि हैं जो जीवित नहीं, लगभग जीवित हैं।
शुक्रिया इला।
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
07 अगस्त 2025
अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ
श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन उदास है। शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है। शांतिनिकेतन का शांत वातावरण अशांत
10 अगस्त 2025
क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़
Husayn remarked ironically, “A nation whose most notable manifestations are tombs and corpses!” Pointing to one of the pyramids, he continued: “Look at all that wasted effort.” Kamal replied enthusi
08 अगस्त 2025
धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’
यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी कहा जा रहा है। कितनी ही बार स्कूलों में, युवाओं के बीच में या फिर कह लें कि तथा
17 अगस्त 2025
बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है
• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना बड़ा कि अपने समय से लेकर आज तक वे कई कला-विधाओं के माध्यम से जनमानस के बीच रहे है
22 अगस्त 2025
वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है
प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में रखने से भी झिझकते हैं, जैसे कि मैं कोई बेढब कुत्ता हूँ; जो उनके घर में गंदे पं