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माफ़िया और राजनीतिक गलियारों में खेले जाने वाले शह और मात के खेल की कहानी

पेशेवर कामयाबी का सबसे ख़राब बाई-प्रॉडक्‍ट यही है कि यह आपको उन सब चीज़ों से दूर कर देती है, जो आपको सबसे ज़्यादा ख़ुशी देती हैं। मेरे मामले में यह चीज़ किताबें पढ़ना है। जब भी वक़्त मिलता है, एक नई किताब शुरू कर देता हूँ और किश्‍तों में ही सही, उसे पूरा ज़रूर करता हूँ। हालाँकि इसमें कई बार नुकसान यह होता है कि जिन किताबों को एक फ़िल्‍म की तरह पढ़ना चाहिए, उन्‍हें एक सीरियल या वेब-सीरीज़ की तरह पढ़ना पड़ता है और यह मजबूरी कई किताबों का लुत्‍फ़ उठाने की यात्रा में बार-बार बाधा बनती है।

बीते दिनों मनोज राजन त्रिपाठी के उपन्यास ‘कसारी मसारी’ (प्रकाशक : एका, इंप्रिंट वेस्‍टलैंड बुक्‍स) भी मेरी इसी मजबूरी का शिकार हुई और जब मैंने इसे पूरा पढ़कर ख़त्‍म किया तो लगा कि अगर इसे एक ही बार में पढ़ा होता तो इसकी गहराई में ज़्यादा भीतर तक जाया जा सकता था। सच तो यह भी है कि किस्‍तों में पढ़ने के बावजूद सही ‘कसारी मसारी’ एक बेहतरीन किताब ही साबित हुई। किताब की कहानी के बारे में ज़्यादा विस्‍तार से बताकर मैं यहाँ स्‍पॉइलर नहीं देना चाहता, लेकिन बक़ौल जिगर मुरादाबादी, बस इतना समझ लीजिए कि एक आग का दरिया है, और डूबकर जाना है। इस किताब को पढ़ते हुए, जब आप एक बार इसमें उतर जाएँगे तो भले ही कितनी तपिश महसूस हो, आपका मन इससे बाहर आने को नहीं करेगा।

कुख्‍यात माफ़िया अतीक अंसारी के जीवन से इन्सपायर्ड ‘कसारी मसारी’ के साथ अच्‍छी बात यह है कि यह उसकी जीवनी नहीं है, बल्कि उन सभी किरदारों की कहानी है, जो नायक या खलनायक, बाबर कुरैशी के निर्माण से विध्‍वंस तक की प्रक्रिया में, जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे किसी-न-किसी रूप में निमित्त बने हैं। संसार के रंगमंच पर किसी अदृश्‍य शक्ति के हाथों से बंधी डोर से संचालित हर कठपुतली का एक स्‍वतंत्र अस्‍तित्‍व है, एक स्‍पष्‍ट लक्ष्‍य है, जो अलग-अलग रास्‍ता चुनने के बावजूद बाबर कुरैशी पर आकर पूरा होता है।

सूबे के मुख्‍यमंत्री, पुलिस के आला अधिकारी, ख़बरिया चैनल के रिपोर्टर, रंगरूट शूटर, अलग-अलग गिरोहों के सरगना, अत्‍याचार के शिकार लोग... पूरी किताब में छोटे-बड़े पचास के क़रीब किरदार होंगे, लेकिन लेखक मनोज राजन त्रिपाठी ने हर किरदार को एक अलग शख़्सियत और अहमियत देकर इस भीड़ में गुम होने से बचाए रखा है, जो कि क़ाबिल-ए-तारीफ़ है।

तारीफ़ तो यहाँ लेखक की इस बात के लिए भी करनी चाहिए कि इसमें राजनीति, मीडिया, पुलिस और माफ़िया... इन सबके बीच समांतर चलने वाले सौहार्द और द्वेष के बीच भी उन्‍होंने ज़बरदस्‍त संतुलन बनाकर रखा है। इसका ताना-बाना उलझाता नहीं, बल्कि चौंकाता है और अहसास कराता है कि सच की पहचान इतनी मुश्किल भी नहीं है, जितना कि हम समझते हैं। यह भी कि सच न तो हमेशा वह होता है, जो हमें बताया जाता है और न ही वो, जिसे हम ख़ुद खोजते हैं।

सच सिर्फ़ सच होता है, बस उसके संस्‍करण अलग-अलग होते हैं, जिनमें से हर व्‍यक्ति अपनी सहूलत और पसंद के हिसाब से एक चुन लेता है। इन्‍हीं में एक और सच—‘कसारी मसारी’ यह भी स्‍थापित करती है कि एक आततायी को भले ही आप किसी एक धर्म से जोड़कर उसका समर्थन करें या विरोध करें, लेकिन उसका सिर्फ़ एक ही धर्म होता है—अत्‍याचार और शोषण।

कुल मिलाकर ‘कसारी मसारी’ एक बहुत ही रोचक और रोंगटे खड़े कर देने वाली किताब है, जिसमें आप नफ़रत करने के लिए भले ही कुछ किरदार चुन सकते हैं, लेकिन दिल से किसी का समर्थन करने का आपका दिल शायद ही करे, क्‍योंकि इसमें कोई भी किरदार दूध का धुला नहीं है। फिर भी, जब वह अधर्म के ख़िलाफ़ खड़ा होता है, जीतने के लिए उसे भी कोई-न-कोई ग़लत रास्‍ता चुनना ही पड़ता है। लेकिन, शायद बदलती दुनिया का तक़ाज़ा भी यही है कि जब, सब कुछ ग़लत हो तो कम ग़लत को चुनने में कोई अपराधबोध नहीं होना चाहिए।

‘कसारी मसारी’ कहानी पर किरदारों की जीत की किताब है, जो इसे एक रेयर और रिकमंडेबल नॉवेल बनाती है।

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