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महाप्राण निराला की आख़िरी तस्वीरें

महाप्राण!

आज 15 अक्टूबर है। महाप्राण निराला की पुण्यतिथि। 1961 की इसी तारीख़ को उनका निधन हुआ था।

लेकिन निराला अमर हैं। उनका मरणोत्तर जीवन अमिट है। उनकी शहादत अमर है। उनका अंत नहीं हो सकता। उन्होंने बताया भी है : ‘अभी न होगा मेरा अंत’।

नागरीप्रचारिणी सभा के विपर्यस्त छवि-संग्रह में से हम निराला के दुर्लभ चित्र आपको दिखा रहे हैं। इन्हें आज तक किसी ने नहीं देखा है। ये अनेक दशकों तक यों ही एक कोने में पड़े रहे और हमें एकाएक दिख गए। हमारा छिपाने में यक़ीन नहीं है। महान निधियों पर कुंडली मारकर बैठ जाने का हमारा कोई इरादा भी नहीं है। निराला राष्ट्र के हैं। ये चित्र भी अब राष्ट्र के हवाले हैं। इतनी अपेक्षा अवश्य है कि प्रयोग करने वाले नागरीप्रचारिणी सभा का उल्लेख अवश्य करें, क्योंकि इनका स्वत्वाधिकार हमारे पास है। 

इन चित्रों में से कुछ उनके जीवनकाल के हैं, जब वह नागरीप्रचारिणी सभा पधारे थे। सभा के आर्यभाषा पुस्तकालय की उस गोष्ठी में रीतिकाल के अन्यतम कवि पद्माकर, समाजवादी चिंतक आचार्य नरेंद्र देव और किसी एक और मूर्धन्य के कुल तीन तैलचित्रों का लोकार्पण हुआ था। महाप्राण निराला मुख्य अतिथि के आसन पर शोभित हैं, लेकिन न जाने कहाँ खोए हुए से दिख रहे हैं। गांधी टोपी लगाकर बाबू संपूर्णानंद और प्रिंस सूट में दिनकरजी भी मंच पर उनके साथ विराजमान हैं। किसी साधु की मानिंद निरालाजी के हाथों में एक बहुत ऊँचा दंड भी है। एक अन्य चित्र में निरालाजी के बाएँ बेढब बनारसी माइक पर बोल रहे हैं। 

कुछ चित्र बनारस की गंगाजी में निरालाजी की अस्थियों के विसर्जन के अनुष्ठान के हैं। उनमें जनता का समुद्र हिलोर मार रहा है। एक ऊँची ट्रक पर एक ओर महाप्राण निराला लिखा हुआ है और उसी ट्रक पर नागरीप्रचारिणी सभा का भी बैनर लगा है। एक चित्र में निरालाजी के आत्मज रामकृष्ण जी हैं। परिजन हैं, काशी के जन हैं और अंततः गंगाजी हैं। रेलवे स्टेशन पर अस्थि-कलश की प्रतीक्षा; स्टेशन पर ही लोगों का हुज़ूम, अस्थिकलश; काशी के घाट की छतरियाँ—इन चित्रों में अनंत यादगार विज़ुअल्स हैं, क्योंकि यह आशिक़ का जनाज़ा है; इसमें धूम है। 

बाद में, सभा में हुई शोकसभा के एक चित्र में मूर्धन्य छायावादी आलोचक शांतिप्रिय द्विवेदी निरालाजी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर बोल रहे हैं। 

कुल मिलाकर इन चित्रों पर हिंदी का अधिकार है। नागरीप्रचारिणी सभा इन्हें प्रस्तुत करके गहरे संतोष का अनुभव कर रही है।

नागरीप्रचारिणी सभा के प्रधानमंत्री और हिंदी के सुपरिचित कवि-गद्यकार व्योमेश शुक्ल की 14 अक्टूबर 2024 की फ़ेसबुक-पोस्ट

चित्र :


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