Font by Mehr Nastaliq Web

‘सोज़’ के तखल्लुस से ग़ज़लें लिखने वाले कांतिमोहन का जाना

लेखक, शिक्षक, विचारक और संगठनकर्ता कांतिमोहन का रविवार, 14 जुलाई को निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। 14 जुलाई 1936 को हल्द्वानी, उत्तराखंड में उनका जन्म हुआ। 14 जुलाई 2024 को 88 वर्ष पूरे करते ही उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

‘सोज़’ के तखल्लुस से ग़ज़लें लिखने वाले कांतिमोहन का जाना जनवादी लेखक संघ सहित हिंदी संसार के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

कांतिमोहन ने रामनगर और मुरादाबाद से स्नातक तक की शिक्षा पूरी करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. किया और वहीं से पीएचडी हासिल की। दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज में पढ़ाते हुए वह वर्ष 1996 में रीडर पद से सेवानिवृत्त हुए।

साल 1958 में उनकी पुस्तक ‘कुरुक्षेत्र मीमांसा’ प्रकाशित हुई। उसके बाद एक राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्त्ता और शिक्षक का व्यस्त जीवन जीते हुए भी वह आलोचना, कहानी, उपन्यास और ग़ज़ल जैसी विधाओं में निरंतर लेखन करते रहे।

उनकी किताबों में—‘प्रेमचंद और अछूत समस्या’, साल 1982 में प्रकाशित हुई, जिसे संशोधन-परिवर्द्धन के बाद वर्ष 2010 में ‘प्रेमचंद और दलित विमर्श’ के नाम से पुनर्प्रकाशित किया गया।

‘क़दम मिलाके चलो’ (गीत और नज़्में : 1982), ‘गुनाहे सुख़न’ (उर्दू ग़ज़ल संग्रह : 1990), ‘रात गए’ (गीत-ग़ज़ल : 2002), ‘दूसरा पहलू’ (कहानी संग्रह), ‘बेअंत का अंत’ (कहानी संग्रह : 2010), ‘पर कथा है शेष’ (उपन्यास : 2010), ‘ज्योति कलश छलके : आज़ादी से पहले फ़िल्मी गीत और गीतकार’ (2015) प्रमुख हैं।

वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के हिंदी मुखपत्र ‘लोकलहर’ के संस्थापक संपादकों में से थे। वह दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ, जनवादी लेखक संघ, जनवादी विचार मंच और जन नाट्य मंच के भी संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वह जलेस की केंद्रीय पत्रिका ‘नया पथ’ के संपादन से भी संबद्ध रहे।

कांतिमोहन के लेखन का दायरा बहुत विस्तृत और विविध-विषयक है। एक समय ‘धर्मयुग’ में उन्होंने खेलों पर बड़े मन से लिखा। लेकिन राजनीतिक-वैचारिक लेखन और ग़ज़ल उनकी सबसे स्वाभाविक विधाएँ थीं।

उनके ग़ज़ल-संग्रह ‘गुनाहे सुख़न’ को 1990 में उर्दू अकादेमी, दिल्ली से पुरस्कृत किया गया।

आंदोलन से जुड़े उनके गीत भी बहुत लोकप्रिय हुए। ‘क़दम मिलाके चलो’ में संग्रहित ‘बोल मजूरे हल्ला बोल’ इसकी मिसाल है—

बोल मजूरे हल्ला बोल
काँप रही सरमाएदारी खुलके रहेगी इसकी पोल
बोल मजूरे हल्ला बोल!


गोदामों में माल भरा है, नोट भरे हैं बोरों में
बेहोशों को होश नहीं है नशा चढ़ा है ज़ोरों में
इसका दामन उसने फाड़ा उसका गिरेबाँ इसके हाथ
कफ़नखसोटों का झगड़ा है होड़ लगी है चोरों में
ऐसे में तू हाँक लगा दे, ला मेरी मेहनत का मोल!
बोल मजूरे हल्ला बोल!

एक तरफ़ नारा और आंदोलन-गीत बन जाने वाली ऐसी रचनाएँ हैं, तो दूसरी तरफ़ ऐसी ग़ज़लें जो अपनी समझ और सराहना के लिए उर्दू ग़ज़ल की रवायत से परिचय की माँग करती हैं।

ग़ालिब के एक शे’र से संवाद करता उनका यह शे’र इसका उदाहरण है—

लौहे-जहाँ पे हर्फ़े-मुकर्रर ही हम सही
अपना वजूद फिर भी मिटाया न जाएगा

दक्षिण अफ़्रीका में इंक़लाबी शायर बेंजामिन मोलोइस को फाँसी पर लटकाए जाने के ख़िलाफ़ उन्होंने 1986 में जो यादगार ग़ज़ल लिखी, उसके कुछ शे’र हैं—

इस तरह तुझसे गुरेज़ाँ हर बशर हो जाएगा
जंग में ख़ल्क़त इधर और तू उधर हो जाएगा

वाए-नादानी ये किसको दार पर लटका दिया
वो तो ऐसा शख़्स था मरकर अमर हो जाएगा

तेरा ख़ंजर उसके साये को भी कब छू पाएगा
रंग सब्ज़े का वो ग़ुंचे का जिगर हो जाएगा

ख़ून के क़तरे ज़मीं की कोख में यूँ डाल मत
तुख़्म ही ऐसा है ये बढ़कर शजर हो जाएगा

ऐ जफ़ाजू तेरी पामाली का दिन नज़दीक है
उसका क्या तारीख़ में वो जलवागर हो जाएगा

देख तेरी लंतरानी हो चली है बेअसर
लामुहाला उसका जादू कारगर हो जाएगा

उनके देहदान की प्रक्रिया मंगलवार, 16 जुलाई 2024 को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में होगी। उससे पहले उन्हें आख़िरी सलाम पेश करने के लिए उनका शरीर दुपहर बाद 2 बजे से 4 बजे तक हरकिशन सिंह सुरजीत भवन, नई दिल्ली में रखा जाएगा।

(जनवादी लेखक संघ की ओर से जारी प्रेस-विज्ञप्ति से)

           

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

06 अगस्त 2024

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

06 अगस्त 2024

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

तड़के तीन से साढ़े तीन बजे के बीच वह मेरे कमरे पर दस्तक देते, जिसमें भीतर से सिटकनी लगी होती थी। वह मेरा नाम पुकारते, बल्कि फुसफुसाते। कुछ देर तक मैं ऐसे दिखावा करता, मानो मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा हो

23 अगस्त 2024

उन सबके नाम, जिन्होंने मुझसे प्रेम करने की कोशिश की

23 अगस्त 2024

उन सबके नाम, जिन्होंने मुझसे प्रेम करने की कोशिश की

मैं तब भी कुछ नहीं था, और आज भी नहीं, लेकिन कुछ तो तुमने मुझमें देखा होगा कि तुम मेरी तरफ़ उस नेमत को लेकर बढ़ीं, जिसकी दुहाई मैं बचपन से लेकर अधेड़ होने तक देता रहा। कहता रहा कि मुझे प्यार नहीं मिला, न

13 अगस्त 2024

स्वाधीनता के इतने वर्ष बाद भी स्त्रियों की स्वाधीनता कहाँ है?

13 अगस्त 2024

स्वाधीनता के इतने वर्ष बाद भी स्त्रियों की स्वाधीनता कहाँ है?

रात का एक अलग सौंदर्य होता है! एक अलग पहचान! रात में कविता बरसती है। रात की सुंदरता को जिसने कभी उपलब्ध नहीं किया, वह कभी कवि-कलाकार नहीं बन सकता—मेरे एक दोस्त ने मुझसे यह कहा था। उन्होंने मेरी तरफ़

18 अगस्त 2024

एक अँग्रेज़ी विभाग के अंदर की बातें

18 अगस्त 2024

एक अँग्रेज़ी विभाग के अंदर की बातें

एक डॉ. सलमान अकेले अपनी केबिन में कुछ बड़बड़ा रहे थे। अँग्रेज़ी उनकी मादरी ज़बान न थी, बड़ी मुश्किल से अँग्रेज़ी लिखने का हुनर आया था। ऐक्सेंट तो अब भी अच्छा नहीं था, इसलिए अपने अँग्रेज़ीदाँ कलीग्स के बी

17 अगस्त 2024

जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ : बिना काटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं

17 अगस्त 2024

जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ : बिना काटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं

कवि जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ (1930-2013) अवधी भाषा के अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं। उनकी जन्मतिथि के अवसर पर जन संस्कृति मंच, गिरिडीह और ‘परिवर्तन’ पत्रिका के साझे प्रयत्न से जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ स्मृति संवाद कार्य

बेला लेटेस्ट

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए