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मृत्यु पर कविताएँ

मृत्यु शब्द की की व्युत्पत्ति

‘म’ धातु में ‘त्यु’ प्रत्यय के योग से से हुई है जिसका अभिधानिक अर्थ मरण, अंत, परलोक, विष्णु, यम, कंस और सप्तदशयोग से संयुक्त किया गया है। भारतीय परंपरा में वैदिक युग से ही मृत्यु पर चिंतन की धारा का आरंभ हो जाता है जिसका विस्तार फिर दर्शन की विभिन्न शाखाओं में अभिव्यक्त हुआ है। भक्तिधारा में संत कवियों ने भी मृत्यु पर प्रमुखता से विचार किया है। पश्चिम में फ्रायड ने मनुष्य की दो प्रवृत्तियों को प्रबल माना है—काम और मृत्युबोध। इस चयन में प्रस्तुत है—मृत्यु-विषयक कविताओं का एक अद्वितीय संकलन।

अंत में

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

मौत से ठन गई

अटल बिहारी वाजपेयी

अँधेरे का सौंदर्य-2

घुँघरू परमार

जीवन-चक्र

रवि प्रकाश

मणिकर्णिका का डोम

श्रीकांत वर्मा

ओ मेरी मृत्यु!

सपना भट्ट

मर्सिया

अंचित

पितृ-स्मृति

आदर्श भूषण

आत्म-मृत्यु

प्रियंका दुबे

बहुत बुरे हैं मर गए लोग

चंडीदत्त शुक्ल

ग़लत जगह

नवीन रांगियाल

लगभग सुखमय!

सुशोभित

उड़ गई माँ

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

शोक

आशुतोष कुमार

मैं हूँ

केदारनाथ अग्रवाल

मनुष्य

विमल चंद्र पांडेय

सभ्यताओं के मरने की बारी

जसिंता केरकेट्टा

शोक

अम्बर पांडेय

अंतिम फूल

सुमित त्रिपाठी

अब पानी बरसेगा तो

सौम्य मालवीय

निष्कर्ष

शुभांकर

अभिनय क्या आत्महत्या है

नंदकिशोर आचार्य

कभी-कभी ऐसा भी होता है

पंकज चतुर्वेदी

उपला

नवीन रांगियाल

ईश्वर की मौत

मोहनदास नैमिशराय

अंत में

सत्यम तिवारी

ध्यान में

मृगतृष्णा

विलाप-1/मई

सौरभ कुमार

विलाप-2/जून

सौरभ कुमार

जीवनवृक्ष

राधावल्लभ त्रिपाठी

अंतिम प्रार्थना

अदनान कफ़ील दरवेश

मौत

अतुल

याद आना

रवींद्रनाथ टैगोर

चूका हुआ निशाना

कृष्ण कल्पित

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