'उम्र हाथों से रेत की तरह फिसलती रहती है और अतीत का मोह है कि छूटता ही नहीं'
हिन्दवी डेस्क
16 मई 2024

हिंदी की समादृत साहित्यकार मालती जोशी का बुधवार, 15 मई को 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वर्ष 2018 में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वह लगभग 70 वर्षों तक साहित्य-संसार में सक्रिय रहीं। 4 अगस्त 2023 को ‘हिन्दवी’ की इंटरव्यू-सीरीज़ ‘संगत’ में हुई बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि वर्ष 1971 में ‘धर्मयुग’ में छपी कहानी के बाद साहित्य-संसार में उनका आगमन हुआ और जिसके बाद उन्हें लगातार पाठकों द्वारा सराहा गया।
मालती जोशी का जन्म 4 जून 1934 को औरंगाबाद, महाराष्ट्र में हुआ। मराठी उनकी मातृभाषा रही। पिता कृष्णराव दिघे पुरानी ग्वालियर रियासत में जज के पद पर कार्यरत थे, साथ ही अँग्रेज़ी, मराठी और संस्कृत के विद्वान भी। घर में पढ़ने-लिखने की परंपरा और हिंदी का आकर्षण उनको हिंदी-संसार तक ले आया।
हिंदी भाषा से उनके जुड़ाव पर हुए सवाल पर मालती जोशी बोलीं, “हम देहातों में रहते थे। वहाँ दूसरी कोई भाषा तो नहीं थी। हाँ, माँ के लिए मराठी भाषा की पत्रिकाएँ आती थीं, जिसकी वजह से मराठी से मेरा संपर्क बना रहा। 15 किताबें हैं मेरी मराठी में। जिनका अनुवाद मैंने किया है। हिंदी मेरे लिए मातृभाषा जैसी ही थी और सिर्फ़ मेरे लिए नहीं मध्य प्रदेश वालों के लिए हिंदी मातृभाषा है। घर से आप निकलते हैं और हिंदी शुरू हो जाती है...’’
मालती जोशी के साहित्यिक जीवन की शुरुआत गीतों से हुई, उन्होंने बाल-साहित्य में भी योगदान दिया। वह बताती हैं कि कैसे लेखन के शुरुआती दौर में जब वह साहित्यिक पत्रिकाओं में कहानियाँ भेजती थीं तो उनकी पाँच में से चार कहानियों को लौटा दिया जाता था, लेकिन ‘धर्मयुग’ में छपने के बाद यह सिलसिला रुका।
शिवानी के बाद मालती जोशी ही हिंदी की सबसे लोकप्रिय कथाकार मानी जाती हैं। वह अपने कथा-कथन की विशिष्ट शैली के लिए जानी जाती रहीं। साहित्य-संसार में उनकी पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं, जिनमें मराठी कथा-संग्रह, उपन्यास, बाल-कथाएँ, गीत-संग्रह, कविता-संग्रह और कथा-संग्रह सम्मिलित हैं। उनके साहित्य पर देश के कई विश्वविद्यालयों में शोध-कार्य हुए हैं।
उनकी कई कहानियों का नाट्य-मंचन भी हुआ और उन्हें रेडियो-दूरदर्शन पर भी प्रसारित किया गया। जया बच्चन ने दूरदर्शन के लिए उनकी कहानियों पर आधारित धारावाहिक ‘सात फेरे’ का निर्माण किया। साथ ही गुलज़ार द्वारा निर्देशित धारावाहिक ‘किरदार’ और ‘भावना’ में भी उनकी दो कहानियों को लिया गया।
मालती जोशी अपनी कहानियों की लोकप्रियता और कथा-संसार में अपने अनुभवों के प्रयोग को लेकर कहती हैं, “जीवन की छोटी-छोटी अनुभूतियों को, स्मरणीय क्षणों को मैं अपनी कहानियों में पिरोती रही हूँ। ये अनुभूतियाँ कभी मेरी अपनी होती हैं कभी मेरे अपनों की। और इन मेरे अपनों की संख्या और परिधि बहुत विस्तृत है। वैसे भी लेखक के लिए आप पर भाव तो रहता ही नहीं है। अपने आस-पास बिखरे जगत का सुख-दुख उसी का सुख-दुख हो जाता है और शायद इसीलिए मेरी अधिकांश कहानियाँ ‘मैं’ के साथ शुरू होती हैं।”
मालती जोशी का कथा-संसार यह पुष्ट करता है कि वह हिंदी-साहित्य-संसार की एक बेहद संवेदनशील लेखिका हैं और जिन्होंने अपनी कहानियों में पारिवारिक जीवन में जूझ रही स्त्रियों को हमेशा पहला स्थान दिया। उनकी कहानियाँ परिवार-समाज में सहनशीलता, प्रेम, समर्पण और त्याग की मूर्ति कही जाने वाली स्त्रियों के दुख, कष्ट और घुटन की बात करती है—“जीवनावकाश पर संध्या छाया उतरने लगती है, और मन कातर हो उठता है। उम्र हाथों से रेत की तरह फिसलती रहती है और अतीत का मोह है कि छूटता ही नहीं। अपनी स्मृतियाँ अपने अनुभव, अपने संस्कार, अपने सिद्धांत और ज़्यादा अपने लगने लगते हैं। उन्हें नई पीढ़ी के साथ बाँटने की इच्छा हो आती है। पर नई पीढ़ी तो समय की तेज़ धारा के साथ भाग रही होती है। पीछे मुड़कर देखने का समय उसके पास कहाँ? हर पीढ़ी को वह दर्द झेलना पड़ता है। हर बार यह टीस नई होकर जन्म लेती है।”
लगभग सत्तर वर्षों तक साहित्य-संसार में सक्रिय रहीं मालती जोशी के रचना-संसार से उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ—‘पाषाण युग’, ‘वो तेरा घर, ये मेरा घर’, ‘मेरे क़त्ल में तुम्हारा हाथ था’, ‘अतृप्त आत्माओं का देश’, ‘हमको हैं प्यारी हमारी गलियाँ’, ‘कबाड़’, ‘मनीऑर्डर’, ‘औरत एक रात है’, ‘पिया पीर न जानी’, ‘रहिमन धागा प्रेम का’, ‘बोल री कठपुतली’, ‘मोरी रँग दी चुनरिया’, ‘शापित शैशव तथा अन्य कहानियाँ’, ‘परिपूर्ति’, ‘मध्यांतर’, ‘समर्पण का सुख’, ‘विश्वासगाथा’, ‘पराजय’, ‘सहचरिणी’, ‘एक घर सपनों का’, ‘पटाक्षेप’, ‘राग-विराग’, ‘मन न भये दस-बीस’, ‘शोभायात्रा’, ‘अंतिम संक्षेप’, ‘आख़िरी शर्त’।
मालती जोशी के अंतिम समय में उनके दोनों पुत्र—ऋषिकेश और सच्चिदानंद तथा पुत्रवधुएँ—अर्चना और मालविका उनके पास थे। वह पिछले कुछ समय से एसोफ़ेगस के कैंसर से पीड़ित थीं।
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