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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

10 जनवरी 2025

‘आत्म-तर्पण : कबहुँ न नाथ नींद भरि सोयो’

‘आत्म-तर्पण : कबहुँ न नाथ नींद भरि सोयो’

‘हिन्दवी’ के विशेष कार्यक्रम ‘संगत’ के 89वें एपिसोड में हिंदी कथा साहित्य के समादृत हस्ताक्षर चन्द्रकिशोर जायसवाल ने यहाँ प्रस्तुत संस्मरणात्मक कथ्य ‘आत्म-तर्पण’ का ज़िक्र किया था, जिसके बाद कई साहित्

10 जनवरी 2025

मंडी हाउस में जल्द शुरू होगा आद्यम थिएटर का सातवाँ संस्करण

मंडी हाउस में जल्द शुरू होगा आद्यम थिएटर का सातवाँ संस्करण

आद्यम थिएटर का सातवाँ संस्करण—राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के मंडी हाउस स्थित कमानी सभागार में 11 और 12 जनवरी से शुरू होगा। आद्यम थिएटर—आदित्य बिड़ला समूह की एक पहल है, जो भारतीय रंगमंच को बढ़ावा

09 जनवरी 2025

ज़िंदगी की बे-अंत नैरंगियों का दीदार

ज़िंदगी की बे-अंत नैरंगियों का दीदार

कहानी एक ऐसा हुनर है जिसके बारे में जहाँ तक मैं समझा हूँ—एक बात पूरे यक़ीन से कही जा सकती है कि आप कहानी में किसी भी तरह से उसके कहानी-पन को ख़त्म नहीं कर सकते, उसकी अफ़सानवियत को कुचल नहीं सकते।  उद

08 जनवरी 2025

किसे आवाज़ दूँ जो मुझे इस जाल से निकाले!

किसे आवाज़ दूँ जो मुझे इस जाल से निकाले!

14 दिसंबर 2024 इच्छाएँ बेघर होती हैं, उन्हें जहाँ भी चार दीवार और एक छत का आसरा दिखता है, वो वहीं टिक जाना चाहती हैं। मनुष्य का मन इच्छाओं का पहला घर है, चारों तरफ़ भटकने के बाद पहली बार उसे मनुष्

07 जनवरी 2025

द वेजिटेरियन : हिंसा और अन्याय से मुक्ति का स्वप्न

द वेजिटेरियन : हिंसा और अन्याय से मुक्ति का स्वप्न

“मुझे एक स्वप्न आया था” कोरियाई लेखिका हान कांग के उपन्यास ‘द वेजिटेरियन’ के मूल में यही वाक्य है, जो उपन्यास की पात्र योंग-हे निरंतर दुहराती रहती है। यह वाक्य साधारण ध्वनित कर सकता है लेकिन यह शो

06 जनवरी 2025

सिंधियों की पीड़ा का बयान

सिंधियों की पीड़ा का बयान

चलना जीवन है और चलते जाना इंसान होने की नियति है। समाजशास्त्र की मूल स्थापना है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। ‘सिमसिम’ के मुख्य पात्र के जीवन की कोख कहानी और उससे निर्मित स्वचेतना से लेखक पाता है क

05 जनवरी 2025

एक आवाज़ के ख़याल में उलझा जीवन

एक आवाज़ के ख़याल में उलझा जीवन

मेरे ख़याल से उससे मेरी पहली मुलाक़ात किशोरावस्था के दौरान हुई थी। यह मुलाक़ात इतनी संक्षिप्त थी कि मुझे याद नहीं हमने उस दौरान क्या-क्या बातें की। कहते हैं ख़याल में वही रहते हैं जो कभी मिलते नहीं,

04 जनवरी 2025

काश! बचपन में हम बड़े होने का सपना न देखते

काश! बचपन में हम बड़े होने का सपना न देखते

पूर्व बाल्यावस्था में मिट्टी जीवन का सबसे अनमोल रत्न था। हम पूरे दिन मिट्टी में सने रहते थे। पैदा हुए तो मिट्टी से पेट भर लिया करते थे। थोड़ा और बड़े हुए तो मिट्टी के खेल-खिलौने बना लेते। हमारी गाड़ि

03 जनवरी 2025

कुसुमपुर के एक बूढ़े आदमी की कथा

कुसुमपुर के एक बूढ़े आदमी की कथा

कुसुमपुर के वृद्ध फ़क़ीरचंद जाएँगे बड़ाबाबू के पास। उनकी पीठ पर एक छड़ी है, जिसमें एक छोटी-सी पोटली लटकी हुई है। बूढ़ा आदमी थोड़ा झुक कर चलता है। अब प्रकाश होने का समय है, इस चैत माह की सुबह में पृथ्व

02 जनवरी 2025

‘द लंचबॉक्स’ : अनिश्चित काल के लिए स्थगित इच्छाओं से भरा जीवन

‘द लंचबॉक्स’ : अनिश्चित काल के लिए स्थगित इच्छाओं से भरा जीवन

जीवन देर से शुरू होता है—शायद समय लगाकर उपजे शोक के गहरे कहीं बहुत नीचे धँसने के बाद। जब सुख सरसराहट के साथ गुज़र जाए तो बाद की रिक्तता दुख से ज़्यादा आवाज़ करती है। साल 2013 में आई फ़िल्म ‘द लंचब