साहित्य और संस्कृति की घड़ी
पिता का जाना पिता के जाने जैसा ही होता है, जबकि यह पता होता है कि सभी को एक दिन जाना ही होता है फिर भी ख़ाली जगह भरने हम सब दौड़ते हैं—अपनी-अपनी जगहों को ख़ाली कर एक दूसरी ख़ाली जगह को देखने। वह जगह भ
वह सावन की कोई दुपहरी थी। मैं अपने पैतृक आवास की छत पर चाय का प्याला थामे सड़क पर आते-जाते लोगों और गाड़ियों के कोलाहल को देख रही थी। मैं सोच ही रही थी कि बहुत दिन हो गए, नाऊन चाची की कोई खोज-ख़बर नहीं
23 अप्रैल 2024
एक शहर में कितने शहर होते हैं, और उन कितने शहरों की कितनी कहानियाँ? वाराणसी, बनारस या काशी की लोकप्रिय छवि विश्वनाथ मंदिर, प्राचीन गुरुकुल शिक्षा के पुनरुत्थान स्वरूप बनाया गया बनारस हिंदू विश्वविद्य
कुछ मित्र अक्सर हिंदी में प्रूफ़ रीडिंग की दुर्गति पर विचार करते रहते हैं। ऐसे में अचानक थोड़ी पुरानी बात याद आ गई। मैं एक बार हिंदी के एक बड़े लेखक के घर बैठा हुआ था। मैंने बातों-बातों में ही ख़र्च
एक भाषा में कालजयी महत्त्व प्राप्त कर चुकीं साहित्यिक कृतियों के पुनर्पाठ के लिए केवल समालोचना पर निर्भर रहना एक तरह की अकर्मठता और पिछड़ेपन का प्रतीक है। यह निर्भरता तब और भी अनावश्यक है जब आलोचना-पद
माहेश्वर तिवारी [1939-2024]—एक भरा-पूरा नवगीत नेपथ्य में चला गया—अपनी कभी न ख़त्म होने वाली गूँज छोड़कर। एक किरन अकेली पर्वत पार चली गई। एक उनका होना, सचमुच क्या-क्या नहीं था! उन्हें रेत के स्वप्न आते
बैशाख के खेत की दरार में यह दुनिया असमान है और कोई वादा नहीं... केवल दो या तीन मील घास के ढेर हैं फिर भी यह सोने जैसा नहीं है हँसिये की आवाज़ ही भूल जाती है धरती की तोप को— करुण, निर्दोष और अस
14 अप्रैल 2024
यह सन् 2000 की बात है। मैं साकेत कॉलेज, अयोध्या में स्नातक द्वितीय वर्ष का छात्र था। कॉलेज के बग़ल में ही रानोपाली रेलवे क्रॉसिंग के पास चाय की एक दुकान पर कुछ छात्र ‘क़स्बाई अंदाज़’ में आरक्षण को लेकर
छतों पर ठट का ठट जमा है, शाम हल्की शफ़क़ में डूबी आसमान पर लहरों के साथ किसी बच्चे की तरह अटखेलियाँ करती मुस्कुरा रही है। अभी सूरज डूबने में वक़्त है, मगर टोपियाँ, दुपट्टे नुमूदार हो रहे हैं। आख़िरी इफ़्
यदि कोई स्त्री कहे कि उसे सेक्स की चाह है, उसकी कामभावनाएँ असंतुष्ट हैं तो इसे क्या कहा जाएगा? हमारे समाज में समस्या यही है कि यह वाक्य सुनते ही सारा ध्यान इस वाक्य से हटकर इस वाक्य को कहने वाली पर
जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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