साहित्य और संस्कृति की घड़ी
धर्मवीर भारती रचित ‘कनुप्रिया’ नई कविता की विशिष्ट रचना है। इस रचना में ‘राधा’ की वेदना को नए रूप में प्रस्तुत किया गया है। ‘कनुप्रिया’ दो शब्दों—‘कनु’ और ‘प्रिया’ से मिलकर बना है। धर्मवीर भारती ने इस
ईरानी सिनेमा के महान् शिल्पी अब्बास कियारोस्तमी एक ऐसे सिनेकार (जो चित्रकार बनना चाहते थे) थे, जिन्होंने फ़िल्म के कैनवास पर जीवन के रंगों को इस तरह बिखेरा, मानो कोई कवि अपने शब्दों से कविता रच रहा ह
प्रथम दर्शन मैं कक्षा में कुछ देर से ही पहुँचा था। धीमे और सधे हुए स्वर में अध्यापक महाशय अपनी बात रख रहे थे। वह गेस्ट लेक्चरर के रूप में वहाँ आए थे। उन्हें देखकर लगा, हर बार की तरह इस बार भी कोई
मैं तब भी कुछ नहीं था, और आज भी नहीं, लेकिन कुछ तो तुमने मुझमें देखा होगा कि तुम मेरी तरफ़ उस नेमत को लेकर बढ़ीं, जिसकी दुहाई मैं बचपन से लेकर अधेड़ होने तक देता रहा। कहता रहा कि मुझे प्यार नहीं मिला, न
पुस्तक की भूमिका पुस्तक के साथ भूमिका का प्रकाशन आम चलन है। यह भूमिका किसी ऐसे व्यक्ति से लिखाई जाती है, जो उस विषय का मान्य विद्वान हो, उसकी बात का वजन हो और जिसके न्याय-विवेक पर भी लोगों का विश्
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School Of Drama) 23 अगस्त से 9 सितंबर 2024 तक हीरक जयंती नाट्य समारोह आयोजित कर रहा है। यह समारोह कई मायनों में विशेष है। एनएसडी रंगमंडल की स्थापना
रविशंकर उपाध्याय स्मृति संस्थान ने युवा कवि रविशंकर उपाध्याय की स्मृति में प्रत्येक वर्ष दिए जाने वाले पुरस्कार—‘रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार 2025’ के लिए प्रविष्टियाँ आमंत्रित की हैं।
19 अगस्त 2024
एक युग बीत जाने पर भी मेरी स्मृति से एक घटा भरी अश्रुमुखी सावनी पूर्णिमा की रेखाएँ नहीं मिट सकी हैं। उन रेखाओं के उजले रंग न जाने किस व्यथा से गीले हैं कि अब तक सूख भी नहीं पाए—उड़ना तो दूर की बात है
एक डॉ. सलमान अकेले अपनी केबिन में कुछ बड़बड़ा रहे थे। अँग्रेज़ी उनकी मादरी ज़बान न थी, बड़ी मुश्किल से अँग्रेज़ी लिखने का हुनर आया था। ऐक्सेंट तो अब भी अच्छा नहीं था, इसलिए अपने अँग्रेज़ीदाँ कलीग्स के बी
कवि जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ (1930-2013) अवधी भाषा के अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं। उनकी जन्मतिथि के अवसर पर जन संस्कृति मंच, गिरिडीह और ‘परिवर्तन’ पत्रिका के साझे प्रयत्न से जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ स्मृति संवाद कार्य