साहित्य और संस्कृति की घड़ी
बीते हफ़्तों में जितनी बार इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) जाना हो गया, उतना तो पहले कुल मिलाकर नहीं गया था। सोचा दोस्तों को बता दूँ कि अगर मैं यूनिवर्सिटी में न मिलूँ तो मुझे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ख
महाप्राण! आज 15 अक्टूबर है। महाप्राण निराला की पुण्यतिथि। 1961 की इसी तारीख़ को उनका निधन हुआ था। लेकिन निराला अमर हैं। उनका मरणोत्तर जीवन अमिट है। उनकी शहादत अमर है। उनका अंत नहीं हो सकता। उन्ह
यह सुदूर दक्षिण का उत्तरी इलाक़ा है। प्रकृति इतनी मेहरबान कि आँखों के आगे से पल भर के लिए भी हरियाली नहीं हटती। मुझे देश को समझने की तड़प और भटकन ने यहाँ लाकर पटका है। किताबों में जब पहली बार गाँव के
शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी के उपन्यास 'कई चाँद थे सरे-आसमाँ' को पहली बार 2019 में पढ़ा। इसके हिंदी तथा अँग्रेज़ी, क्रमशः रूपांतरित तथा अनूदित संस्करणों के पाठ 2024 की तीसरी तिमाही में समाप्त किए। तब से अब
मुझे आज भी वह दिन याद है, जब मैंने पहली बार रामनगर, वाराणसी की रामलीला देखी थी। हम सब भाई-बहन ऑटो में बैठकर पापा के साथ रामलीला देखने गए थे। पीछे मुड़कर देखो सब कुछ सपने जैसा लगता है। बनारस में वैसे ह
किताबें पढ़ने की यात्रा, मुझे उन्हें लिखने से कम रोमांचक नहीं लगती। ख़ासकर किताब अगर ऐसी हो कि तीन बजे देर रात भी—जब तक कि वह पूरी नहीं हो जाए—जगाए रखे, इस तरह की किताब से जुड़ी हर चीज़ स्मृति में अटक ज
10 अक्तूबर 2024
अफ़सर बनते ही आदमी सुहागन बन जाता है। कल तक फ़ाइलों में डूबा आदमी, आज बाढ़ के दिनों की मछलियों की तरह सतह पर छलछलाते हुए दिखने लगा है। विभिन्न सरकारी काज-प्रयोजनों में प्रायः जिसका प्रवेश-निषिद्ध था,
15, 16 और 17 अक्टूबर, 2024 को वाराणसी के गंगातट पर एक तीन दिवसीय ‘संगीत परिसंवाद’ का आयोजन होने जा रहा है। छह सत्रों में तीन दिनों तक होने वाले इस कार्यक्रम में संगीतज्ञ-विद्वान ऋत्विक सान्याल, राजेश
किसी शहर को जानने के लिए उसको आत्मसात करना आवश्यक है, लेकिन कुछ शहर आपसे आपकी आत्मा को ही माँगते हैं—कहने का मतलब है ख़ुद को आत्मर्पित करना। बनारस जो इतिहास और किंवदंतियों का संगम है। इस शहर को समझने
5 अक्टूबर को आर्ट स्पेस, भोपाल में प्रयाग शुक्ल की एकल चित्रकला प्रदर्शनी ‘Myriad Hues’ का स्नेहिल शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर छाया दुबे, हंसा मिलन कुमार, साधना शुक्ला और प्रीति पोद्दार जैन की समूह प्रदर