साहित्य और संस्कृति की घड़ी
10 मार्च 2025
हुए कुछ रोज़ किसी मित्र ने एक फ़ेसबुक लिंक भेजा। किसने भेजा यह तक याद नहीं। लिंक खोलने पर एक लंबा आलेख था—‘गुनाहों का देवता’, धर्मवीर भारती के कालजयी उपन्यास की धज्जियाँ उड़ाता हुआ, चन्दर और उसके चरित्
• इधर एक वक़्त बाद विनोद कुमार शुक्ल [विकुशु] की तरफ़ लौटना हुआ। उनकी कविताओं के नवीनतम संग्रह ‘केवल जड़ें हैं’ और उन पर एकाग्र वृत्तचित्र ‘चार फूल हैं और दुनिया है’ से गुज़रना हुआ। गुज़रकर फिर लौटना हुआ।
अभी कुछ दिन हुए एक साथी कहता था कि यार कुछ भी कहो कविताओं के जो अर्थ फ़लाँ आलोचक निकाल कर गए हैं, ऐसे कविता को समझना आज के पाठक के बूते के बाहर है। मैंने कहा कि पाठक ही क्यों ठीक उसी परिप्रेक्ष्य में
साल 2014 में रिलीज़ हुई अँग्रेज़ी भाषा की एक अद्भुत फ़िल्म है—‘The Fault In Our Stars’. साल 2020 में आई ‘दिल बेचारा’ इसी फ़िल्म का हिंदी रीमेक थी, लेकिन इसे देखते हुए यही दुख और मलाल रहा कि यह मूल फ़
अष्टभुजा शुक्ल कहते हैं— “और कोई आए-न-आए लेकिन कुंभ आएगा... ...कुंभ आ रहा है, बल्कि कुंभ आ चुका है।” जब महाकुंभ का आगमन हो रहा था तब मैंने यह पंक्तियाँ उद्धृत की थी। लेकिन अब महाकुंभ बीत गया त
आशीष त्रिपाठी का अद्यतन काव्य संग्रह ‘शान्ति पर्व’ विवेकशील मानस की भाव-यात्रा है। भाव के साथ चेतना भी जागृत है। इस यात्रा में सब कुछ है, सब कुछ! फणीश्वरनाथ रेणु के शब्दों में कहें तो—“इसमें फूल भी ह
लेखक संतोष सिंह और आदित्य अनमोल द्वारा अँग्रेज़ी में लिखी गई ‘दी जननायक कर्पूरी ठाकुर : वॉइस ऑफ़ दी वॉइसलैस’ एक प्रेरक जीवनी है, जो कर्पूरी ठाकुर की साधारण शुरुआत से लेकर एक परिवर्तनकारी राष्ट्रीय नेत
क़व्वाल उस्ताद फ़रीद अयाज़ और उस्ताद अबू मुहम्मद की एक शाम यूट्यूब पर क़ैद है। दूर शहर। घर की अंतरंग महफ़िल। हारमोनियम, ढोल और शागिर्द। ख़ुसरो दिल्ली में अपने आँगन में सोए हैं। शब्द शताब्दियों से
• गत रविवासरीय पढ़कर हिंदी-जगत में संभव हुए भगदड़रत व्यवहार के बाद, इस बार इस स्तंभ [रविवासरीय] की संरचना पर कुछ बातें दर्ज करने का दिल कर रहा है और कुछ उत्तर-प्रतिउत्तर प्रस्तुत करने का भी... इस स्
01 मार्च 2025
तीन का आँकड़ा क्या है? तीन लोग हों, तो भी अर्थी ले जाई जा सकती है, बस एक तरफ़ थोड़ा झुकाव रहेगा। लोक-विश्वास देखें, तो तीन तिगाड़ा-काम बिगाड़ा। सुखी परिवार को भाषा को बिन परखे कहा जाए तो दो मिय