साहित्य और संस्कृति की घड़ी
08 मई 2024
हमारे गाँव में और कुछ हो या न हो, कुछ मिले न मिले... पर रवींद्रनाथ थे। वह थे और वह पूरी तरह से घर के आदमी थे। घरवाले वही होते हैं जिन्हें देखकर भी हम अनदेखा करते हैं, जिन्हें सोचकर भी हम नहीं सोचते या
07 मई 2024
एक भारतीय मानुष को पहले-पहल रवींद्रनाथ ठाकुर कब मिलते हैं? इस सवाल पर सोचते हुए मुझे राष्ट्रगान ध्यान-याद आता है। अधिकांश भारतीय मनुष्यों का रवींद्रनाथ से प्रथम परिचय राष्ट्रगान के ज़रिए ही होता है, ह
मई 2024 तुमने कहा—जाती हूँ और तुमने सोचा कवि केदार की तरह मैं कहूँगा—जाओ लेकिन मेरी लोकभाषा के पास अपने बिंब थे मेरी लोकभाषा में कोई कहीं जाता था ‘तो आता हूँ’ कहकर शेष बच जाता था
‘क़िस्साग्राम’ उपन्यास की शुरुआत जिस मंदिर के खंडित होने से हुई है, उसके लेखन का काल उस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा का समय है। उपन्यासकार प्रभात रंजन इस बात को ख़ुद इस तरह से कहते हैं, ‘‘अन्हारी नामक किसी
सावधानी का केवल एक क्षण होता है, जहाँ आप रुक सकते हैं। ~~~ अगर मैं आपसे कहूँ कि मानव दौड़ की भाषा ही औसत दर्जे का प्रयास है तो? शब्द, रचनाएँ, साहित्य सब कुछ क्या यह अभिव्यक्ति का सबसे औसत दर्ज
एक पुस्तक को पढ़ने के कितने तरीक़े हो सकते हैं! आइए देखें : • एक तरीक़ा तो वह है जो मैं किसी भी नई पुस्तक को हाथ में लेते ही शुरू कर देता हूँ। उसे पेज-दर-पेज पलटते जाना। साथ मे उसके सारे अध्यायों के
बच्चों के साथ विहान ड्रामा वर्क्स, भोपाल की विशेष नाट्य कार्यशाला शुरू हो चुकी है। यह नाटक कार्यशाला 01 मई 2024 से 26 मई 2024 तक चलेगी तथा इस दौरान बच्चों के साथ मिलकर नाटक ‘पीली पूँछ’ तैयार किया जाए
जेएनयू द्वारा आयोजित वर्ष 2012 की (एम.ए. हिंदी) प्रवेश परीक्षा के परिणाम में हर साल की तरह छोटे गाँव और क़स्बे इस दुर्लभ टापू की शांति भंग करने के लिए घुस आए थे। हमारी क्लास एलएसआर और मिरांडा हाउस जैस
‘समारा का क़ैदी’ एक प्राचीन अरबी कहानी है। इस कहानी का आधुनिक रूपांतरण सोमरसेट मौ'म ‘अपॉइंटमेंट इन स्मारा’ (1933) नाम से कर चुके हैं। यहाँ इस कहानी का चित्रकथात्मक रूपांतरण कर रहे—अविरल कुमार और मैना
पिता का जाना पिता के जाने जैसा ही होता है, जबकि यह पता होता है कि सभी को एक दिन जाना ही होता है फिर भी ख़ाली जगह भरने हम सब दौड़ते हैं—अपनी-अपनी जगहों को ख़ाली कर एक दूसरी ख़ाली जगह को देखने। वह जगह
जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।
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