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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

06 अगस्त 2024

‘संवेदना न बची,  इच्छा न बची, तो मनुष्य बचकर क्या करेगा?’

‘संवेदना न बची, इच्छा न बची, तो मनुष्य बचकर क्या करेगा?’

24 जुलाई 2024 भतृहरि ने भी क्या ख़ूब कहा है— सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति।।  अर्थात् : जिसके पास धन है, वही गुणी है; या यह भी कि सभी गुणों के लिए धन का ही आसरा है।  बताइए, क्या यह आज भी सच न

05 अगस्त 2024

मैं जब चाहे बाल नहीं धो सकती

मैं जब चाहे बाल नहीं धो सकती

“आज बाल नहीं धोने हैं।” “क्यों?” “आज एकादशी है।” “पर बाबा तो अभी-अभी शैंपू करके निकले हैं।” “तुमसे तो बात ही करना बेकार है। चार किताब पढ़ के आज के लैकन तेज हो जाई त ह थ...”   औरतों का ब

04 अगस्त 2024

मुग़लसराय से दिल्ली : मित्रता के तीस साल

मुग़लसराय से दिल्ली : मित्रता के तीस साल

मेरे एक मित्र हैं सुखलाल जी। उनसे मेरी मित्रता के लगभग तीस साल होने को हैं। वैसे तो वह मेरे साथ दिल्ली महानगर में एक प्रकाशन में काम कर चुके हैं, लेकिन उनसे और नज़दीकियाँ इसलिए हैं कि वह मेरे गाँव क्

03 अगस्त 2024

बुद्धिजीवी और गधे

बुद्धिजीवी और गधे

बुद्धिजीवियों ने अपना वाहन नहीं बदला। आज भी गधे उनके पसंदीदा वाहन हैं। ...एक गधे को दूसरे गधे से बहुत ईर्ष्या होती है।                                                        बुद्धिजीवी कभी घोड़े क

02 अगस्त 2024

दिल्ली नायकों की आस में जीती है और उन्हीं की सताई हुई है

दिल्ली नायकों की आस में जीती है और उन्हीं की सताई हुई है

जिस तरह निर्मल वर्मा की सभी कृतियाँ बार-बार ‘वे दिन’ हो जाती हैं, कुछ उसी तरह मुझे भी इलाहाबाद के वे दिन याद आते हैं। — ज्ञानरंजन एक ...और मुझे दिल्ली के ‘वे दिन’ याद आते हैं, और बेतरतीब याद

01 अगस्त 2024

आख़िर ऐसे तो न याद करें प्रेमचंद को

आख़िर ऐसे तो न याद करें प्रेमचंद को

गत 31 जुलाई 2024 को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में महान् साहित्यकार प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में ‘प्रेमचंद का महत्त्व’ शीर्षक विचार-गोष्ठी का आयोजन विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ द्विव

31 जुलाई 2024

हिन्दवी उत्सव की कविता-संध्या : सुंदर, सुखद, अविस्मरणीय

हिन्दवी उत्सव की कविता-संध्या : सुंदर, सुखद, अविस्मरणीय

गत चार वर्षों से हो रहे ‘हिन्दवी उत्सव’ की शृंखला का यह तीसरा आयोजन था, जो डिजिटल नहीं बल्कि पाठकों के बीच (साथ) हुआ। ज़ाहिर है, इन वर्षों में ‘हिन्दवी’ ने जिस तरह का मुक़ाम हासिल कर लिया है, उससे इत

31 जुलाई 2024

हिन्दवी उत्सव के बहाने दुःख ने दुःख से बात की...

हिन्दवी उत्सव के बहाने दुःख ने दुःख से बात की...

‘हिन्दवी’ ने बीते दिनों अपने चार वर्ष पूरे किए। अच्छे-बुरे से परे ‘हिन्दवी’ कभी चर्चा से बाहर नहीं रहा। ‘हिन्दवी’—‘रेख़्ता फ़ाउंडेशन’ का ही उपक्रम है। ‘जश्न-ए-रेख़्ता’ में ख़ूब भीड़ होती है। सवाल यह

31 जुलाई 2024

प्रेमचंदजी के साथ दो दिन

प्रेमचंदजी के साथ दो दिन

“आप आ रहे हैं, बड़ी ख़ुशी हुई। अवश्य आइए। आपसे न-जाने कितनी बातें करनी हैं। मेरे मकान का पता है— बेनिया-बाग़ में तालाब के किनारे लाल मकान। किसी इक्केवाले से कहिए, वह आपको बेनिया-पार्क पहुँचा देगा

30 जुलाई 2024

क्या हुआ ‘हिन्दवी’ उत्सव की कविता-संध्या (में नहीं) से

क्या हुआ ‘हिन्दवी’ उत्सव की कविता-संध्या (में नहीं) से

मैं गए रविवार (28 जुलाई 2024) ‘हिन्दवी’ द्वारा आयोजित कविता-पाठ के कार्यक्रम ‘कविता-संध्या’ सुनने के लिए त्रिवेणी कला संगम (नई दिल्ली) गया था। वहाँ का समाँ देखकर मैं विस्मित रह गया। गंभीर कविता के प्

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

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