व्यंग्य : अश्लील है समय! समय है अश्लील!
कुछ रोज़ पूर्व एक सज्जन व्यक्ति को मैंने कहते सुना, “रणवीर अल्लाहबादिया और समय रैना अश्लील हैं, क्योंकि वे दोनों अगम्यगमन (इन्सेस्ट) अथवा कौटुंबिक व्यभिचार पर मज़ाक़ करते हैं।” यह कहने वाले व्यक्ति का
‘क़िस्साग्राम’ का क़िस्सा
‘क़िस्साग्राम’ उपन्यास की शुरुआत जिस मंदिर के खंडित होने से हुई है, उसके लेखन का काल उस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा का समय है। उपन्यासकार प्रभात रंजन इस बात को ख़ुद इस तरह से कहते हैं, ‘‘अन्हारी नामक किसी
स्त्री सेक्सुअलिटी के पहलू
यदि कोई स्त्री कहे कि उसे सेक्स की चाह है, उसकी कामभावनाएँ असंतुष्ट हैं तो इसे क्या कहा जाएगा? हमारे समाज में समस्या यही है कि यह वाक्य सुनते ही सारा ध्यान इस वाक्य से हटकर इस वाक्य को कहने वाली पर