‘क़िस्साग्राम’ का क़िस्सा
‘क़िस्साग्राम’ उपन्यास की शुरुआत जिस मंदिर के खंडित होने से हुई है, उसके लेखन का काल उस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा का समय है। उपन्यासकार प्रभात रंजन इस बात को ख़ुद इस तरह से कहते हैं, ‘‘अन्हारी नामक किसी
स्त्री सेक्सुअलिटी के पहलू
यदि कोई स्त्री कहे कि उसे सेक्स की चाह है, उसकी कामभावनाएँ असंतुष्ट हैं तो इसे क्या कहा जाएगा? हमारे समाज में समस्या यही है कि यह वाक्य सुनते ही सारा ध्यान इस वाक्य से हटकर इस वाक्य को कहने वाली पर