काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था
तदैजति तन्नैजति-ईशावास्योपनिषद् आत्म-बोध और जगद्-बोध के नीचे ज्ञानियों ने गहरी खाई खोदी पर हृदय ने कभी उसकी परवा न की; भावना दोनों की एक ही मानकर चलती रही। इस दृश्य जगत् के बीच जिस आनंद-मंगल की विभूति का साक्षात्कार होता रहा, उसी के स्वरूप की नित्य और