साहित्य और संस्कृति की घड़ी
हमारी नई-नई शादी हुई थी और मैंने शिवानी से कहा, “अच्छा तुम्हें एक बात बताता हूँ।” उसने सिर हिलाया। मैंने कहा, “तुम्हें पता है, तुम्हारे एक दूसरे ससुर भी हैं।” शिवानी हैरानी से मेरी तरफ़ दे
उनासीवें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर प्रयागराज शहर आज़ादी का उत्सव मनाने की तैयारी कर रहा था। इसी उल्लास के बीच स्वराज विद्यापीठ में 9 से 16 अगस्त 2025 तक ‘स्वराज उत्सव’ के अंतर्गत इलाहाबाद वि
अजमेर की साहित्यिक धरती ने अनेक नामचीन हस्तियों को जन्म दिया है। इन्हीं में से एक हैं साहित्यकार और लघु पत्रिका लहर के संपादक प्रकाश जैन—जिन्होंने न केवल कविता के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई, बल्कि ह
भूख देखी है आपने? भूख वह भी किसी की आँखों में! भूख भरी आँखों को देख या तो सिहरन होती है या विस्मय... इस भूख को तृप्ति कैसे मिलेगी? यह जानने के प्रयास में, मैं उसके पीछे चली गई। पहले मुझे उस भूख की आख
बचपन किसी भी मनुष्य के जीवन की सबसे कोमल और संवेदनशील अवस्था होती है। इस अवस्था में जिन वस्तुओं से हम जुड़ते हैं, वे हमारी सोच, आत्मबोध और समाज को देखने की दृष्टि का आधार बन जाती हैं। लड़कियों के लिए
पिता की अनुपस्थिति में पिता बनती एक स्त्री आज मैं अपने पिता के बारे में नहीं, अपने बच्चे के पिता के बारे में बात करना चाहती हूँ। घर में हम तीन बहनें थीं। सबसे बड़ी बहन को माँ बनने में बहुत कठिनाई
हिंदी कथा-संसार में हाशिए के लोगों की पीड़ा और जीवन-संघर्ष को शब्द देने वाले कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह अपने जीवन के पचहत्तर बरस पूरे कर चुके हैं। उनकी रचनाएँ गाँव-समाज, बोली-बानी और साधारण मनुष्य के
प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में रखने से भी झिझकते हैं, जैसे कि मैं कोई बेढब कुत्ता हूँ; जो उनके घर में गंदे पं
उर्दू गद्य साहित्य की बेहतरीन और बहुचर्चित हस्ताक्षर इस्मत चुग़ताई की आत्मकथा है—‘काग़ज़ी है पैरहन’। यह किताब इस्मत चुग़ताई की शुरूआती ज़िंदगी और उनकी निर्मिति की कहानी को बहुत रोचक अंदाज़ में बयाँ करती है
जिस वक़्त मुझे सबसे ज़्यादा जॉब सिक्योरिटी की ज़रूरत थी, सबसे ज़्यादा फ़ाइनेंशियल सिक्योरिटी की ज़रूरत थी, उस वक़्त मैंने सबसे ज़्यादा बचकाना काम किया। मैंने जॉब छोड़ दी, पर क्यों? और यह बात मैं आप लोगो