साहित्य और संस्कृति की घड़ी
सो रहो मौत के पहलू में ‘फ़राज़’ नींद किस वक़्त न जाने आए और फिर वह सो गईं—चिर निद्रा में। यह 5 नवंबर 2024 की रात थी। बस एक दिन पहले ही वेंटिलेटर पर आई थीं। पर अब सबको लग ही रहा था कि अब नहीं लौट
दादा (विनोद कुमार शुक्ल) से दुबारा मिलना ऐसा है, जैसे किसी राह भूले पंछी का उस विशाल बरगद के पेड़ पर वापस लौट आना—जिसकी डालियों पर फुदक-फुदक कर उसने उड़ना सीखा था। विकुशु को अपने सामने देखना जादू है।
लिखने का सही समय क्या होता है? शायद वही समय—जब भीतर कुछ बेचैन करता है, चुपचाप करवटें बदलता है और शब्द बनकर बाहर आना चाहता है। बचपन में जब पहली बार पेंसिल उठाई थी तो यह नहीं पता था कि उससे करना क्य
25 अक्तूबर 2025
हमारे यहाँ अनेक लेखक हैं, जो अध्यापन करते हैं। अनेक ऐसे छात्र होंगे, जिन्होंने क्लास में बैठकर उनके लेक्चरों के नोट्स लिए होंगे। परीक्षोपयोगी महत्त्व तो उनका अवश्य होगा—किंतु वह तो उन शिक्षकों का भी
भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह सामाजिक पहचान, वर्ग, जाति और सत्ता संरचनाओं से निर्मित राजनीति की भी वाहक होती है। इसे ‘प्रतीकात्मक पूँजी’ के तौर पर भी देखा जा सकता है, जो किसी समाज की सा
23 अक्तूबर 2025
“जिन हाथों में फ़िल्म की क़िस्मत है, वे बदक़िस्मती से इसे इंडस्ट्री समझ बैठे हैं। इंडस्ट्री को ‘मज़ाक़’ और इसलाह से क्या निस्बत? वह तो एक्सप्लायट करना जानती है और यहाँ इंसान के मुक़द्दसतरीन (पवित्रतम
यह घटना नवंबर के आस-पास की है, जब सेमेस्टर का ख़ौफ़ हर विद्यार्थी पर तारी होता है। इन दिनों में हर अच्छा और गदहा विद्यार्थी आपको रट्टा मारते मिलेगा और बात अगर हॉस्टल में रहने वाले लड़कों की हो तो कहन
असरानी एक असरानी के निधन पर हमें कितना ग़मगीन होना चाहिए राजेश खन्ना के निधन से ज़्यादा या राजेश खन्ना के निधन से कम? दो वह कहानी का हिस्सा थे पर कहानी उनके बारे में नहीं थी कभी वह न
नाटक शुरू होने के पहले की थर्ड बेल बजती है। नाट्यशाला का अँधेरा गाढ़ा होते-होते किसी प्रागैतिहासिक, चंद्रमा विहीन रात्रि के ठोस अँधेरे में बदल जाता है। और तब पृथ्वी के किसी सुदूर कोने से एक वृंदगान क
सेयरिंग यांगजोम लामा तिब्बती लेखक हैं। ‘वी मैज़र द अर्थ विथ ऑर बॉडिज़’ उनका पहला उपन्यास है। उनका जन्म और पालन-पोषण नेपाल के एक तिब्बती शरणार्थी समुदाय में हुआ। आपको कैसा महसूस होगा अगर आपको आपके