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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

20 जून 2025

‘8/4 बैंक रोड, इलाहाबाद : फ़िराक़-परस्तों का तीर्थ’

‘8/4 बैंक रोड, इलाहाबाद : फ़िराक़-परस्तों का तीर्थ’

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एम.ए. में पढ़ने वाले एक विद्यार्थी मेरे मित्र बन गए। मैं उनसे उम्र में छोटा था, लेकिन काव्य हमारे मध्य की सारी सीमाओं पर हावी था। हमारी अच्छी दोस्ती हो गई। उनका नाम वीरेंद्र

19 जून 2025

आप हमारी प्लेट में देखकर हमें जज क्यों करते हो!

आप हमारी प्लेट में देखकर हमें जज क्यों करते हो!

कुछ सवाल जो मांसाहारी, मुझसे या/और वीगनवादियों से लगातार पूछते हैं—इसलिए नहीं कि उनको उत्सुकता है, बल्कि सिर्फ़ इसलिए कि वो मुझे अपमानित कर सकें। वो नहीं जानते कि इस दौरान वो पूरी तरह नंगे हो जाते है

18 जून 2025

पिन-कैप्चा-कोड की दुनिया में पिता के दस्तख़त

पिन-कैप्चा-कोड की दुनिया में पिता के दस्तख़त

लिखने वाले अपनी उँगलियों का हर क़लम के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते। उनके भीतर एक आदर्श क़लम की कल्पना होती है।  हर क़लम का अपना स्वभाव होता है। अपनी बुरी आदतें और कुछ दुर्लभ ख़ूबियाँ भी।  मैंने ह

17 जून 2025

पूर्वांचल के बंकहों की कथा

पूर्वांचल के बंकहों की कथा

कहते हैं इवोल्यूशन के क्रम में, हमारे पूर्वज सेपियंस ने अफ़्रीका से पदयात्रा शुरू की थी और क्रमशः फैलते गए—अरब, तुर्की, बाल्कन, काकेशस, एशिया माइनर, भारत, चीन; और एक दिन हर उस ज़मीन पर उनकी चरण पादुक

16 जून 2025

औरंगज़ेब का घरेलू नाम नवरंग बिहारी था

औरंगज़ेब का घरेलू नाम नवरंग बिहारी था

लेख से पहले चंद शब्द कुछ दिन पहले अपने पुराने काग़ज़ात उलट-पलट रही थी कि एक विलक्षण लेख हाथ आया। पंडित वाहिद काज़मी का लिखा—हेडलाइन प्लस, जुलाई 2003 में प्रकाशित। शीर्षक पढ़कर ही झुरझुरी आ गई। एक स

15 जून 2025

बिंदुघाटी : करिए-करिए, अपने प्लॉट में कुछ नया करिए!

बिंदुघाटी : करिए-करिए, अपने प्लॉट में कुछ नया करिए!

• अवसर कोई भी हो सबसे केंद्रीय महत्व केक का होता है। वह बिल्कुल बीचोबीच होता हुआ, फूला हुआ, चमकता हुआ, अकड़ा हुआ, आकर्षित करता हुआ रखा होता है।  वह एक विचारहीन प्रविष्टि के रूप में हर जगह आवश्यक बन

14 जून 2025

बेवफ़ा सोनम बनी क़ातिल!

बेवफ़ा सोनम बनी क़ातिल!

‘बेवफ़ा सोनम बनी क़ातिल’—यह नब्बे के दशक में किसी पल्प साहित्य के बेस्टसेलर का शीर्षक हो सकता था। रेलवे स्टेशन के बुक स्टाल्स से लेकर ‘सरस सलिल’ के कॉलमों में इसकी धूम मची होती। इसका प्रीक्वल और सीक्वल

13 जून 2025

मेहदी हसन : ‘पी के हम-तुम जो चले झूमते मैख़ाने से...’

मेहदी हसन : ‘पी के हम-तुम जो चले झूमते मैख़ाने से...’

मैं वर्ष 1977 में झुंझुनू से जयपुर आ गया था—राजस्थान विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम.ए. करने के लिए। वह अक्टूबर का महीना होगा, जब रामनिवास बाग़ स्थित रवींद्र मंच पर राजस्थान दिवस समारोह चल रहा

12 जून 2025

भाषा, लोग और ‘बहुरूपिये’ वाया 2014

भाषा, लोग और ‘बहुरूपिये’ वाया 2014

आज़ादी के बाद के, हमारे देश का इतिहास जब भी लिखा जाएगा तो उसमें दो खंड लाज़िमी होंगे। पहला—आज़ादी से लेकर 2014 तक और दूसरा—2014 से बाद का। ऐसा नहीं है कि 2014 के बाद से हमारे समाज में धर्म के नाम पर

12 जून 2025

‘अब सनी देओल में वो बात नहीं रही’

‘अब सनी देओल में वो बात नहीं रही’

‘बॉर्डर 2’ का विचार सुनते ही जो सबसे पहला दृश्य मन में कौंधा, वह बालकनी में खड़े होकर पिता का कहना था—‘अब सनी देओल में वो बात नहीं रही।’ इस वाक्य में सिर्फ़ एक अभिनेता का अवसान नहीं था, एक पूरे युग क