साहित्य और संस्कृति की घड़ी
महिंद्रा कबीरा फ़ेस्टिवल—जो संगीत, साहित्य और आध्यात्मिकता का एक अद्भुत संगम है, अपने आठवें संस्करण के साथ 13 दिसंबर से 15 दिसंबर 2024 के बीच वाराणसी के ऐतिहासिक घाटों पर लौट रहा है। यह तीन दिवसीय उत्
अवधी में रोमानी कविता की भी एक संवृद्ध परंपरा रही है, जिसकी शुरुआती मिसाल हम अबुल हसन यमीन उद-दीन ख़ुसरो (1253-1325 ई.) के यहाँ देख सकते हैं। उनका एक प्रसिद्ध कथन है कि “मैं हिंदुस्तान की तूती हूँ। अ
एक रोज़ जब लगभग सन्नाटा पसरने को था, मैंने अपने साथ खड़े लेखक से पूछा, “आप इतनी रूमानियत अपनी रचनाओं में क्यों भरते हैं? क्या आपको लगता है कि इंसान अपने अकेलेपन में ऐसे सोचता होगा?” हम रास्ते पर च
मेरे प्यारे दोस्तो, हिंदुस्तान कभी सुबह जल्दी उठने वालों का देश हुआ करता था। यह हमारे डीएनए में था। सुबह उठकर आप बिना किसी रुकावट के दस क़दम भी नहीं चलते कि एक आत्ममुग्ध चाचा जी मिल जाते, जो सुबह 4 ब
फ़ेसबुक पर एक वीडियो तैरती हुई दिखाई दी। उसमें एक बुज़ुर्ग अपील कर रहे हैं कि कल देवनगर झूसी में आयोजित साहित्यिक गोष्ठी में शिरकत करें। मैंने तय किया कि इस गोष्ठी में जाऊँगा। मैं जहाँ रहता हूँ, वहाँ
“माँ कभी न थकने वाली चींटियों की तरह अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाती रहती।” चीकू की चमकीली पर पनीली आँखें दुनिया भर के दर्द का समुद्र भीतर समाए बड़ी हो रही थीं। नन्ही उम्र में चट्टानी प्रतिरोधक क्षमता च
वसंत इस कामकाजी शहर का मूड नहीं है। संभवतः जनवरी के बाद ही गर्मियों की तैयारी में यह शहर फ़रवरी के मूड को स्किप कर देता है। इस बीच वसंत का आना भी महज़ हवा में कपूर की तरह ही होता है। उदास बयार की छुअन
लेख से पूर्व रोहिणी अग्रवाल की आलोचना की मैं क़ायल हूँ। उनके लिए बहुत सम्मान है, हालाँकि उनसे कई वैचारिक मतभेद हैं। ‘हिन्दवी’ के विशेष कार्यक्रम ‘संगत’ में अंजुम शर्मा को दिया गया उनका साक्षात्कार
किसी शहर का मुस्लिम इलाक़ा उस शहर की धड़कती हुई जगहों में से एक होता है, जहाँ आला दर्ज़े के शायरों, बावरचियों, हकीमों, दानिशमंदों, इबादतगुज़ारों से लेकर हर तरह के काम-धंधे वाले लोग मिलेंगे। चावड़ी बा
दस साल बाद 2024 में प्रकाशित नया-नवेला कविता-संग्रह ‘नदी का मर्सिया तो पानी ही गाएगा’ (हिन्द युग्म प्रकाशन) केशव तिवारी का चौथा काव्य-संग्रह है। साहित्य की तमाम ख़ूबियों में से एक ख़ूबी यह भी है कि व