साहित्य और संस्कृति की घड़ी
• एक प्रकाशक को देखकर मेरे मन में सबसे पहला ख़याल यही आता है कि उससे किताब ले लूँ। यहाँ ‘किताब ले लेने’ का अर्थ एकायामी नहीं है। • हिंदी के साहित्यिक प्रकाशकों के विषय में जो बात सबसे ज़्यादा परेशान
इस किताब को पढ़ते हुए यह महसूस होता है कि कवि-कथाकार-फ़िल्मकार देवी प्रसाद मिश्र की कहानियों के साथ चलना ख़ुद को विशद करना और उदात्त करना ही तो है। ‘कोई है जो’ खिड़की से भीतर गया, दरवाज़े से भीतर जात
भारत रंग महोत्सव की तीसरी संध्या को, एमआईटी-एडीटी विश्वविद्यालय, रंगमंच विभाग के प्रथम वर्ष के छात्रों द्वारा ‘कंजूस’ नाटक प्रस्तुत किया गया। कलाकारों ने कंजूसी से इस नाटक का प्रदर्शन किया। नाटक में
6 अगस्त 2017 की शाम थी। मैं एमए में एडमिशन लेने के बाद एक शाम आपसे मिलने आपके घर पहुँचा था। अस्ल में मैं और पापा, एक ममेरे भाई (सुधाकर उपाध्याय) से मिलने के लिए वहाँ गए थे जो उन दिनों आपके साथ रहा कर
‘अम्बर परियाँ’ बलजिंदर नसराली का तीसरा उपन्यास है। इससे पहले पंजाबी में उनके दो उपन्यास आ चुके हैं। उन्होंने कहानियाँ भी लिखी हैं। उनके दो कहानी संग्रह ‘डाकखाना खास’ और ‘औरत की शरण में’ भी प्रकाशित ह
नई दिल्ली में जन्मीं साहित्यिक पत्रकारिता से लंबे समय तक संबद्ध रहने वालीं गगन गिल नब्बे के दशक में ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ के साथ अपनी अभूतपूर्व उपस्थिति से हिंदी कविता के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़
सुरेन्द्र वर्मा का जन्म सन् 1941 को झाँसी में हुआ, वह हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। उनका नाटक ‘सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक’ सन् 1972 में प्रकाशित हुआ। उपन्यास ‘मुझे चाँद चाहिए’
• 1 फ़रवरी से 9 फ़रवरी के बीच नई दिल्ली के प्रगति मैदान [भारत मंडपम] में आयोजित विश्व पुस्तक मेले की स्थिति जानने की उत्कंठा जैसे आप सबको है, वैसे ही धृतराष्ट्र को भी है। वह अपनी इस आकांक्षा की पूर्ति
हिंदुस्तान क़स्बों और नगरों से भरा देश है। अगर हिंदुस्तान से क़स्बे निकाल दिए जाएँ, तो बस धूल-खाते, मिलों के शोर से भरे इलाक़े, बजबजाते हुए नाले, एक दूसरे से उलझने को तैयार गाड़ियाँ और आसमान की कोख म
शैलेंद्र और साहिर लुधियानवी—हिंदी सिनेमा के दो ऐसे नाम, जिनकी लेखनी ने फ़िल्मी गीतों को साहित्यिक ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उनकी क़लम से निकले अल्फ़ाज़ सिर्फ़ गीत नहीं, बल्कि ज़िंदगी का फ़लसफ़ा और समाज क