Font by Mehr Nastaliq Web

राहगीर : हिंदी कविता-संगीत का रॉकस्टार

बीसवीं सदी के तीसरे और चौथे दशक में जब अमेरिका महामंदी और डस्ट बॉउल (धूलभरी आँधी) से जूझ रहा था, उस समय होबो (घुमक्कड़ मज़दूर)—रोज़गार की खोज में मालगाड़ियों में सवार होकर मुफ़्त में यात्रा करते थे। यात्राओं में भद्दे चुटकुलों के बीच वूडी गथरी का गिटार बजता था। उनके गीतों में मेहनतकश मज़दूरों, प्रवासियों के हक़ की बात और सामाजिक अन्याय के बयान होते थे। यह अमेरिकी संगीत का बहुत बड़ा दौर था, जिसने आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित किया और एक नई दिशा दिखाई। उस दौर में पीट सीगर, बॉब डिलन, जॉन बाएज, फ़िल ऑक्स जैसे कई कलाकारों सामने आए और उन्होंने सिविल राइट्स से लेकर पर्यावरण-जागरूकता तक को अपने गीतों का हिस्सा बनाया।

भारत में सामाजिक समता की बात कहने वाले स्वतंत्र गायक बहुत कम थे/हैं या शायद भाषाई विविधता के कारण उनके संगीत की पहुँच कभी पूरी तरह से संपूर्ण भारत तक नहीं पहुँची।

एक ऐसे परिदृश्य में बीती सदी के अंतिम दशक में राजस्थान के सीकर ज़िले के पास स्थित छोटे से क़स्बे खंडेला में राहगीर का जन्म होता है। एक मध्यवर्गीय परिवार में पले-बढ़े राहगीर की प्राथमिक शिक्षा भी यहीं होती है। बचपन में ही राहगीर कहानियों और कविताओं की दुनिया से परिचित होकर, पढ़ने-लिखने का गहरा शौक़ लगा लेते हैं। बाल पत्रिकाएँ, पाठ्यक्रम की किताबों जो भी उन्हें उपलब्ध होता, वह सब पढ़ डालते। यही आदत आगे चलकर उनके भीतर रचनात्मकता के बीज बोती है। 

स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद राहगीर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने निकल जाते हैं, कॉलेज के बाद कॉर्पोरेट में नौकरी के दिन भी शुरू होते हैं। नौकरी के वक़्त हिंदी और वैश्विक कविता के साथ-साथ उनका तआ‘रुफ़ उसी अमेरिकी संगीत के बड़े दौर से होता है; अस्ल में उनके भीतर पल रही रचनात्मकता, संवेदनशीलता और गीतों की तलाश ही उन्हें कहीं न कहीं अमेरिकी फ़ोक-परंपरा में निखरे कलाकारों की तरह, अपनी भी एक राह बनाने के लिए प्रेरित करती है। इसी सिलसिले में वह अभी तक 200 से ज़्यादा गीत-कविताएँ लिख चुके हैं। 

नौकरी के दिनों में लिखे उनके एक गीत की पंक्ति है : 

तन खा गई ये तनखा, 
ना छोड़ा मालिक मन का

मन में अपनी बात कहने की हूक उन्हें नौकरी छोड़ देश भ्रमण पर मज़बूर कर देती है। यहीं से शुरू होता है राहगीर का कल्ट। शुरूआती दौर में घूम-घूमकर कैफ़े से लेकर ढाबों तक, कभी लोगों के लिए तो कभी खाने के लिए—राहगीर ने शहरों-गाँवों, जयपुर, दिल्ली, पटना, लुधियाना, चंडीगढ़, अमृतसर, बंबई, शिमला, मनाली, कुल्लू, चंबा, सीकर, झुंझुनू, कोटा, चूरू, काशी, कोच्चि, गोवा, राँची, कलकत्ता, इंदौर, चेन्नई, गुवाहाटी, आईज़ोल, मदुरई, सिरसा, सूरत और तिरुचिपल्ली.., जहाँ गए, वहाँ गीत गाए। ग़ुर्बत के दिनों में भी उनका गिटार बजता रहा। कुछ साल बाद इस क्रम में ही एक रोज़ उनकी एक क्लिप वायरल हुई और उनका संगीत संसार के सामने आया। इसके बाद राहगीर उस गाड़ी में चढ़ गए, जो उन्हें उनके ख़्वाबों को जीवन की यात्रा पर लेकर चल रही है।

राहगीर सरल हैं, लेकिन साधारण बिल्कुल नहीं। राहगीर इस पीढ़ी की कविता का शिल्प जानते हुए सरल हैं। वह मुख्यधारा की कविता के शिल्प से परिचित हैं। उनका मानना है कि बात को ऐसे क़तई न लिखा जाए, जिसे केवल पढ़ा-लिखा ही समझ पाए। उनके दो कविता-संग्रह (‘कैसा कुत्ता है’, ‘समझ गए या समझाऊँ’) और एक उपन्यास (‘आहिल’) हिन्द युग्म प्रकाशन से आ चुके हैं। इन किताबों का बेस्टसेलर होना इस बात का प्रमाण है कि उन्हें सुनने के साथ-साथ बहुत पढ़ा भी जा रहा है।

राहगीर का कवि उन सबके लिए भी हैं, जो साहित्यिक दुनिया से एक दूरी पर होते हैं—यानी जो मूलत: पाठक हैं, आस्वादक हैं। रमाशंकर यादव विद्रोही, धूमिल, पाश को अपनी प्रेरणा बताने वाले राहगीर के गीत सीधे और बहुत आसानी से आपके ज़ेहन पर ठक-ठक करते हैं। वह आपको उन्हीं बातों से विचलित करते हैं, जिन समस्याओं-मुश्किलों को आप—बचने के लिए—आँख बंद करके रोज़ लाँघते हैं।

आज उनके गीतों की लोकप्रियता इतनी है कि हिंदुस्तान के लगभग सभी साहित्यिक, कला उत्सव के मंचों पर दुनिया भर के प्रमुख शहरों में वह अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं। उनके गीत सुनकर यह लगता है (और जिसकी पूरी संभावना भी है) कि भारतीय जनमानस भविष्य में वूडी गथरी की संगीत-क्रांति की तरह का कुछ घटता हुआ ज़रूर देखेगा।

~~~

सुपरिचित गीतकार-गायक राहगीर इस बार के ‘हिन्दवी उत्सव’ में गीत-संगीत प्रस्तुति देने के लिए आमंत्रित हैं। ‘हिन्दवी उत्सव’ से जुड़ी जानकारियों के लिए यहाँ देखिए : हिन्दवी उत्सव-2025

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन उदास है। शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है। शांतिनिकेतन का शांत वातावरण अशांत

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

Husayn remarked ironically, “A nation whose most notable manifestations are tombs and corpses!” Pointing to one of the pyramids, he continued: “Look at all that wasted effort.” Kamal replied enthusi

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी कहा जा रहा है। कितनी ही बार स्कूलों में, युवाओं के बीच में या फिर कह लें कि तथा

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना बड़ा कि अपने समय से लेकर आज तक वे कई कला-विधाओं के माध्यम से जनमानस के बीच रहे है

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में रखने से भी झिझकते हैं, जैसे कि मैं कोई बेढब कुत्ता हूँ; जो उनके घर में गंदे पं

बेला लेटेस्ट