सैयारा : अच्छी कहानियाँ स्मृतियों की जिल्द हैं
‘हम कोशिकाओं से नहीं, स्मृतियों से बने हैं।’ शिवेन्द्र का यह कथन, जो मैंने एक बार ‘सदानीरा’ पत्रिका में पढ़ा था, उस वक़्त केवल एक दिलचस्प विचार लगा था। मगर अब, इसका अर्थ मेरे लिए कहीं गहरा हो गया है।
बेवफ़ा सोनम बनी क़ातिल!
‘बेवफ़ा सोनम बनी क़ातिल’—यह नब्बे के दशक में किसी पल्प साहित्य के बेस्टसेलर का शीर्षक हो सकता था। रेलवे स्टेशन के बुक स्टाल्स से लेकर ‘सरस सलिल’ के कॉलमों में इसकी धूम मची होती। इसका प्रीक्वल और सीक्वल