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नागरीप्रचारिणी सभा की मनोरंजन पुस्तकमाला

अँग्रेज़ी की प्रसिद्ध पुस्तक के इस शीर्षक ने हिंदी में उस महान् मुहावरे को जन्म दिया; जिसके शब्द हैं : सादा जीवन उच्च विचार। यह किताब सन् 1897 में पहली बार प्रकाशित हुई थी और अँग्रेज़ी-साहित्य में इसका ओहदा बहुत ऊँचा था। संसार की अनेक भाषाओं में इसके अनुवाद भी प्रकाशित हुए। लेखक का नाम : Theodore Thornton Munger. यह किताब तमाम ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफ़ॉर्म्स पर उपलब्ध है।

साल 1914 में यह पुस्तक हिंदी में भी पहली बार प्रकाशित हुई। अब इसका नाम हुआ : ‘आदर्श जीवन’। हिंदी-पुस्तक अँग्रेज़ी मज़मून का शब्दशः – मक्षिका स्थाने मक्षिका – अनुवाद नहीं थी; बल्कि अँग्रेज़ी की किताब के आधार पर लिखी गई एक लगभग स्वतंत्र पुस्तक थी। प्रकाशक : नागरीप्रचारिणी सभा और लेखक-अनुवादक : आचार्य रामचंद्र शुक्ल। 

20वीं सदी के उन आरंभिक वर्षों में नागरीप्रचारिणी सभा ने अनेक ऐसी पुस्तकें प्रकाशित की थीं जिनसे लोक-शिक्षण के साथ-साथ शिक्षित जनता की रुचि का परिष्कार भी हुआ। इस किताब को भी तब की सरकार ने हिंदी हाई प्रोफ़ीशियेंसी परीक्षा के पाठ्यक्रम में रखा था और सन् 1920 में काशी की ज़िला प्रदर्शनी में इसके लिए लेखक महाशय को चाँदी का पदक भी मिला था। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस किताब को हाथों-हाथ लिया गया और थोड़े ही समय में सभा ने इसके अनेक संस्करण प्रकाशित किए। 

इस पुस्तक के माध्यम से नागरीप्रचारिणी सभा ने ‘मनोरंजन पुस्तकमाला’ नामक एक बेहद दिलचस्प और शिक्षाप्रद शृंखला की शुरुआत की थी। इस शृंखला में शामिल अनेक पुस्तकें पाठ्यक्रमों में रखी गईं और रोज़-ब-रोज़ इनकी माँग बढ़ती गई। 200-300 और कभी-कभी इससे भी ज़्यादा पृष्ठों की यह पुस्तकें तब के योग्यतम विद्वानों से लिखवाई गई थीं। सभी पुस्तकों का आकार एक था : 18 सेमी गुणे 12 सेमी; और मूल्य भी एक ही था : ₹1 (एक रूपये मात्र)।

आगे चलकर मनोरंजन पुस्तकमाला में ऐसी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुईं जो किसी मशहूर विदेशी पुस्तक को आधार बनाकर लिखी गई थीं—उनका हुबहू अनुवाद नहीं थीं। अमेरिकी विद्वान और अश्वेत समाज के नेता बुकर टी. वाशिंगटन की किताब ‘Up from Slavery’ को आधार बनाकर बाबू रामचंद्र वर्मा ने ‘आत्मोद्धार’ शीर्षक पुस्तक तैयार की। गणपति जानकीराम दूबे ने सर जॉन लूबॉक की किताब ‘Pleasure of Life’ के आधार पर ‘जीवन के आनंद’ नामक किताब लिखी। जाने-माने अँग्रेज़ी लेखक सैमुअल स्माइल्स की किताब ‘Thrift’ को बीच में रखकर बाबू रामचंद्र वर्मा ने ही ‘मितव्यय’ शीर्षक प्रबंध तैयार किया; मिश्रबंधु विनोद वाले मिश्रबंधुओं (श्यामबिहारी मिश्र और शुकदेवबिहारी मिश्र) ने ‘Self Culture’ नामक पुस्तक की प्रतिपुस्तक ‘आत्मशिक्षण’ नाम से तैयार की।

इसी तारतम्य में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक एवं प्राणितत्त्ववेत्ता हैकेल के ग्रंथ ‘The Riddle of the Universe’ की सहायता से विश्व-प्रपंच नाम की किताब भी लिखी थी; जिसके आरंभ में लिखित 155 पृष्ठों की विचारवान भूमिका हिंदी-साहित्य की अनमोल निधियों में शामिल है।

ज़ाहिर है कि ये सभी अनुवाद निरे अनुवाद नहीं थे; श्रेष्ठ रचना और अच्छे से अच्छे विचारों का अपनी भाषा में रूपांतरण थे।

इन पुस्तकों के प्रथम प्रकाशन की घटना अब एक सदी से ज़्यादा पुरानी हो चली है। अँग्रेज़ी में मूल पुस्तकों का सम्मान यथावत है—वे उपलब्ध हैं और लोग उन्हें पढ़ रहे हैं; लेकिन हिंदी में उन विदेशी ग्रंथों की महान् पुनर्रचनाएँ हाशिये पर चली गई हैं। 

हालाँकि आचार्य शुक्ल की पुस्तक ‘आदर्श जीवन’ में शामिल कुछ निबंध यू.पी. बोर्ड की कक्षा 8 और कक्षा 10 की पाठ्य-पुस्तकों में प्रायः पिछले पचास-साठ बरस से बदले हुए नाम के साथ शामिल हैं। हम सब लोगों ने उन निबंधों को आचार्य शुक्ल के मौलिक निबंध मानकर पढ़ा क्योंकि पाठ्य-पुस्तक हमें यह नहीं बताती कि ये किस विदेशी ग्रंथ को आधार बनाकर लिखे गए हैं। कक्षा 8 की पुस्तक में शामिल निबंध का नाम है ‘आत्मनिर्भरता’ और कक्षा 10 वाले निबंध का ‘मित्रता’। हर साल बोर्ड-परीक्षा में मित्रता वाले पाठ से ज़रूर सवाल पूछे जाते हैं। भोर में उठकर आचार्य शुक्ल की जीवनी के साथ ‘मित्रता’ शीर्षक पाठ के विभिन्न अवतरण मैंने भी रटे। आचार्य शुक्ल की वह कालजयी पुनर्रचना—पुस्तक में जिसका नाम है ‘सांसारिक जीवन’; और जिसमें सरस-प्रांजल भाषा में मित्र और मित्रता का गहन विश्लेषण किया गया है—पूरे संसार की निगाह में उनका मौलिक निबंध है; और पूरा संसार उसे ‘मित्रता’ के ही नाम से पढ़ता-जानता आया है।

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