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एक विस्मृत क्रांतिकारी : जननायक कर्पूरी ठाकुर

लेखक संतोष सिंह और आदित्य अनमोल द्वारा अँग्रेज़ी में लिखी गई ‘दी जननायक कर्पूरी ठाकुर : वॉइस ऑफ़ दी वॉइसलैस’ एक प्रेरक जीवनी है, जो कर्पूरी ठाकुर की साधारण शुरुआत से लेकर एक परिवर्तनकारी राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित होने की यात्रा को दर्ज करती है। यह पुस्तक उनके समाजवादी आदर्शों, दूरदर्शी नीतियों और बिहार के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में समावेशिता और सशक्तिकरण के माध्यम से किए गए बदलावों की गहराई से पड़ताल करती है।

हालाँकि कर्पूरी ठाकुर को (पूर्व उप प्रधानमंत्री चरण सिंह और एल.के. आडवाणी के साथ) वर्ष 2024 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर लंबे समय से विलंबित भारत रत्न से सम्मानित किया गया, लेकिन तथाकथित ‘राष्ट्रीय मीडिया’ कहे जाने वाले अँग्रेज़ी भाषी मीडिया में उनके बारे में बहुत ज़्यादा नहीं लिखा गया। तीन भारत रत्नों की घोषणा की गई, जिसमें सबसे अधिक कवरेज लाल कृष्ण आडवाणी, फिर चरण सिंह और आख़िर में कर्पूरी ठाकुर को प्राप्त हुई। यह ठीक है कि आडवाणी लुटियंस दिल्ली में रहते हैं, चरण सिंह इंडिया गेट से 100 मील के दायरे में, जबकि कर्पूरी ठाकुर बहुत दूर बिहार से थे, जो प्रतिशत के हिसाब से बहुत बड़ी पिछड़ी जाति की जनसंख्या के साथ अब भी भारत के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है। यह समाजवादी नेता कुलीन वर्ग से नहीं, बल्कि कमजोर पृष्ठभूमि से संबद्ध थे जो ज़मीनी स्तर जुड़े होने के साथ ही आस-पास की हर घटना से वाक़िफ़ रहते थे। उनकी राजनीति ने शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभाव डाला—लेकिन मेरी समझ के अनुसार उनके हाशिएकरण का मुख्य कारण उनका अँग्रेज़ी के प्रति कठोर रुख़ था। अँग्रेज़ी में लिखने वाले—चाहे वे वामपंथी हों या दक्षिणपंथी—को ‘राष्ट्रीय प्रेस’ के संपादकीय और विचार लेखों में जगह मिलती रही, लेकिन अँग्रेज़ी के विरोध में अडिग कर्पूरी ठाकुर जैसे नेताओं को वहाँ जगह नहीं मिली। 

इसलिए जननायक कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती पर अँग्रेज़ी में उनकी जीवनी बहुप्रतीक्षित थी। इस लेख के माध्यम से संतोष सिंह और आदित्य अनमोल, दोनों को नाई के बेटे से भारतीय राजनीति के प्रथम पंक्ति के नेताओं में शुमार होने वाली कहानी को दर्ज करने वाली इस विशिष्ट राजनीतिक जीवनी के संबंध में शानदार सहयोग हेतु बधाई। एक ओर जहाँ बिहार की राजनीतिक अर्थव्यवस्था के गहरे अनुभव वाले पटना स्थित वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह हैं, तो दूसरी ओर अमेरिका में रहने वाले अकादमिक आदित्य अनमोल, जो लोक नीति और मात्रात्मक अर्थशास्त्र में विशेषज्ञ हैं। दोनों ने मिलकर बिहार के समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर के राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव पर आधारित अध्ययन में गहन राजनीतिक अंतर्दृष्टि, ज़मीनी रिपोर्ट, अनुभवजन्य साक्ष्य और प्रासंगिक क़िस्से प्रस्तुत किए हैं। 1952 से 1985 तक सभी चुनाव (1984 को छोड़कर) जीतने वाले कर्पूरी ठाकुर जनता की नब्ज़ को पहचानने और मतपेटी की शक्ति में विश्वास रखने वाले एक लोकप्रिय नेता थे।
कोई आश्चर्य नहीं कि उपमुख्यमंत्री के रूप में, शिक्षा और वित्त विभागों की ज़िम्मेदारी सँभालते हुए, कर्पूरी ठाकुर बिहार में पहली ग़ैर-कांग्रेसी (SVD) सरकार के मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिंह से भी अधिक लोकप्रिय थे। ठाकुर के मुख्य फैसलों में मैट्रिक (जो कर्पूरी डिवीजन भी कहा जाता था) के लिए अँग्रेज़ी भाषा की परीक्षा पास करने में छूट, सीमांत किसानों को भूमि कर में छूट, अत्यंत गरीबों के लिए काम के बदले भोजन कार्यक्रम, पिछड़ी जातियों के लिए 26 प्रतिशत आरक्षण—जो मंडल आयोग का पूर्वगामी—के साथ ही ऊँची जातियों में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को रोज़गार में आरक्षण महत्त्वपूर्ण हैं। उनका मानना था कि मुख्यतः कृषि आधारित समाज में नौकरी केवल आजीविका का साधन ही नहीं, बल्कि प्रतिष्ठा और समाज में समावेशन का प्रतीक भी है। उन्होंने महिलाओं के कष्ट, पीड़ा और घरेलू हिंसा को नज़दीक से देखा था, इसलिए उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए राज्य में शराबबंदी लागू की। बिहार राज्य में शराबबंदी करने वाले वे राज्य के पहले मुख्यमंत्री भी थे। कर्पूरी ठाकुर से प्रेरणा लेने का दावा करने वाले वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस नीति को अपनाया है।  

यद्यपि समाजवादी विचारधारा के समूचे परिप्रेक्ष्य द्वारा कांग्रेस पार्टी के समक्ष प्रस्तुत चुनौतियों और गठबंधन राजनीति के धर्म और अधर्म को समझने के लिए सभी इस पुस्तक के सभी 14 अध्यायों को पढ़ा और आत्मसात किया जाना चाहिए, लेकिन अंतिम अध्याय ‘दी ट्रेल ऑफ़ कैम्फर’ अवश्य ही पढ़ना चाहिए। यह भारत के राजनीतिक क्षितिज पर कर्पूरी ठाकुर के जीवन का परिचय भी है। सिंह और अनमोल कपूर (जिस शब्द से उनका नाम पड़ा) को ‘एक रेजिन, जो शरीर की तंत्रिका तंत्र को उत्तेजना और शीतलता, दोनों अहसास देती है’ के रूप में वर्णित करते हैं।  

इस अध्याय में कर्पूरी ठाकुर के ‘शीतल और सुखदायक’ कार्यकाल की तुलना लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे तीन अन्य नेताओं—डॉ. श्रीकृष्ण सिंह (सिन्हा), लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार—से की गई है। डॉ. सिन्हा के 16 वर्षों के स्थिर कार्यकाल, प्रशासनिक कौशल, व्यावसायिक और व्यक्तिगत ईमानदारी ने प्रशासन विशेषज्ञ डॉ. एप्पलबी को बिहार को ‘भारत के सबसे बेहतर शासित राज्यों में से एक’ कहने के लिए प्रेरित किया। 1950 का दशक वह समय था जब पूर्वी क्षेत्र उद्योग और बुनियादी ढाँचे के मामले में  पश्चिम और दक्षिण से बहुत आगे था। 

यह सच है कि बी.सी. रॉय (पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री) और सिन्हा के 1954 में प्रस्तावित दोनों राज्यों के विलय को दोनों विधानसभाओं से स्वीकृति मिलने के बावजूद अमल में नहीं लाया जा सका। अगर ऐसा होता, तो भारत का राजनीतिक और औद्योगिक परिदृश्य काफ़ी अलग होता। राज्यों के पास राजनीतिक वजन और वित्तीय शक्ति होती, जिससे केंद्र-राज्य संबंध अधिक संतुलित होते। फिर भी डॉ. सिन्हा ही वह शख्स थे जिन्होंने भूमि सुधार, कृषि, शिक्षा और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की नींव डाली। सिन्हा के ‘ट्रिकल डाउन’ सिद्धांत में विश्वास को अस्वीकार कर कर्पूरी ठाकुर ने अपने शासन काल में ‘लोक केंद्रित’ दृष्टिकोण अपनाया। उनकी राजनीतिक विचारधारा ने सामाजिक शक्ति संरचना में महत्त्वपूर्ण बदलाव लाए। जहाँ काँग्रेस के शासन में ऊँची जातियों का वर्चस्व था, वहीं समाजवादी शासन में ओबीसी, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जातियों को सशक्त किया गया। लालू यादव ने ख़ुद को उनका अनुयायी बताया, लेकिन ठाकुर की समावेशी, विचारधारात्मक और टकराव रहित राजनीति के विपरीत, यादव ने ऊँची जातियों और पिछड़ी जातियों के बीच द्वंद्व पैदा किया। यादव की राजनीति के तीन चरण थे : मंडलीकरण, धर्मनिरपेक्षता और यादवकरण। वहीं नीतीश कुमार ने भी ठाकुर के सामाजिक अभियंत्रण के सिद्धांत अपनाए, लेकिन ठाकुर की विरासत से कोई प्रमुख सबक नहीं लिया। ठाकुर ने दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेताओं की एक पूरी पीढ़ी तैयार की, जिनमें रामविलास पासवान, विनायक प्रसाद यादव, शिवानंद पासवान, मंगनीलाल मंडल, अब्दुल बारी सिद्दीकी आदि शामिल थे। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भीमराव अंबेडकर और भगत सिंह की तरह उनकी मृत्यु के बाद की विरासत उनके जीवनकाल की उपलब्धियों से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। भारत रत्न उनके समावेशी विकास की राजनीतिक दृष्टि और दूरदर्शिता को सच्ची श्रद्धांजलि है।

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