शिक्षकों के लिए होमवर्क
विभांशु कल्ला
05 सितम्बर 2024

ख़ाली वक़्त में फ़ंतासियाँ रचना या दूसरे ढंग से कहें तो फ़ंतासियों के बारे में सोचने के लिए ख़ाली वक़्त निकालना मेरे पसंदीदा कामों में से एक है। मेरी सबसे प्रिय फ़ंतासी यह है—जिसे सोचने में एलियन या सुपरहीरो को सोचने जितनी मेहनत नहीं लगती—क्या हो अगर भारत के अवयस्क नागरिक (बच्चे) अपनी स्वायत्तता प्राप्त कर लें, और कोई भी काम उनसे मजबूरी में ना करवाया जा सके। ऐसे में उन संज्ञाओं के साथ क्या होगा जिन्हें हम शिक्षक, स्कूल, पाठ्यक्रम, परीक्षा, टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, शिक्षा निदेशालय, शिक्षा मंत्रालय से संबोधित करते आए हैं।
यह बात हमें भले ही फ़ंतासी लगे, लेकिन अगर बच्चों को स्वायत्तता दी जाए तो ऐसे वाक्य हमें सुनने को मिलेंगे जो हमारे शैक्षणिक ढाँचें की नींव को ही हिला दें—“मैं नहीं पढ़ूँगा”, “मेरा अभी पढ़ने का कोई मूड नहीं है”, “आपको पढ़ाना आता ही नहीं है”, “यह घटिया किताब है”, “हम पूरी कक्षा के साथियों ने मिलकर तय किया है कि हम परीक्षा नहीं देंगे” इत्यादि। लेकिन प्रायः ऐसे वाक्य सुनने को नहीं मिलते हैं क्योंकि इसके लिए सालों का जतन कर एक व्यवस्था बनाई गई है जिसमें छात्र सिर्फ़ ग्राही हैं, और अपनी ‘तय सीमा’ में रह कर ही वह कुछ बात रखने के अधिकारी हैं। यह अधिकार भी सामाजिक पृष्ठभूमि और कक्षा में आपकी ‘मेरिट’ से तय होते हैं और अगर शुरुआत में ही किसी छात्र को ‘कमज़ोर’ और ‘लापरवाह’ जैसे शब्दों से लेबल कर दिया जाए तो उसके कक्षा में बोलने के ‘वैध’ अधिकार भी छिन जाते हैं।
कुल जमा बात यह है—हमें कक्षा को किसी शक्ति संरचना से बाहर की कोई चीज़ नहीं समझना चाहिए। वह भी एक राजनीतिक क्षेत्र है, जिसे ज़ोर, हिंसा, वर्चस्व, चालाकी, संस्कारों का प्रयोग करते हुए चलाया जाता है और जहाँ शिक्षक के पास राज्य, सभ्यता और आर्थिक संरचना का पूरा समर्थन है।
इस पूरी प्रक्रिया में शिक्षक एक जमात के तौर पर भागीदार-हिस्सेदार है, लेकिन पूर्णत: ज़िम्मेदार नहीं है। यहाँ किसी एक को ज़िम्मेदार बनाकर कार्यवाही करने वाली सरकारी प्रक्रिया नहीं अपनायी जा सकती। फिर भी शिक्षक को प्रशिक्षित करने वाले संस्थानों और योग्यता की परख करने वाले इम्तिहानों को ही देखें तो वह ख़ुद ख़राब शैक्षणिक पद्धति के शिकार हैं, तो इस यथास्थितिवाद को कैसे चुनौती दें?
एक तो यह सवाल हमें बड़े ढाँचागत परिवर्तन की ज़रूरत बताता है, लेकिन उन ढाँचागत परिवर्तन के साथ एक शिक्षक ना दिखाई देने वाली इन समस्याओं को कैसे देख सकता है? वह कैसे एक बेहतर शिक्षक बनने का प्रयास कर सकता है, हालाँकि इस प्रक्रिया में उसे रोज़ नए सवालों का सामना करना पड़ता है। उनमें से अधिकतर के जवाब शिक्षक को ख़ुद अपनी रचनात्मकता और प्रयोगधर्मिता से ही खोजकर हल करने होंगे। इसके साथ ही यहाँ उसे में वैसी ही समस्या से जूझ रहे साथी शिक्षकों और इस प्रक्रिया में पहले से शामिल रहे शिक्षाविदों के सहयोग की भी ज़रूरत पड़ेगी।
इसी प्रक्रिया में, मैं यहाँ पर हिंदी में छपी शिक्षा-संबंधित किताबों की वह सूची दे रहा हूँ—जो लोगों द्वारा सराही गई है, और जो हमें शिक्षा के विषय में थोड़ा और गहराई से समझने पर ज़ोर देती है। शिक्षक इसे अपना आख़िरी पाठ्यक्रम हरगिज़ ना माने, क्योंकि बेहतर शिक्षक बनने की प्रक्रिया लंबी, जटिल तो होती है और यह कई बार बहुत विशिष्ट स्थानीय या अपने विषय संबंधित समझ विकसित करने की माँग करती है। अगर बहुत सारे शिक्षक इन सब सवालों का सामना करेंगे, उनके बारे में सोचेंगे तो धीरे-धीरे इन किताबों की लिस्ट छोटी पड़ती जाएगी और शिक्षा साहित्य के एक समृद्ध, वैविध्यपूर्ण पब्लिक स्फेयर का निर्माण होता जाएगा।
आलोचनात्मक चेतना के लिए शिक्षा, पाओलो फ़्रेरे (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन)
उत्पीड़ितों का शिक्षाशास्त्र, पाओलो फ़्रेरे (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन)
उम्मीदों का शिक्षाशास्त्र, पाओलो फ़्रेरे (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन)
विद्यालय के नाम पत्र बारबियाना के छात्रों द्वारा (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन)
अध्यापक, सिल्विया एस्टॉन वार्नर (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन)
बच्चों से बातचीत, गैरथ बी मैथ्यूज़ (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन)
शैक्षिक ज्ञान और वर्चस्व, प्रो. कृष्ण कुमार (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन)
राज, समाज और शिक्षा, प्रो. कृष्ण कुमार (राजकमल प्रकाशन)
चूड़ी बाज़ार में लड़की, प्रो. कृष्ण कुमार (राजकमल प्रकाशन)
मेरा देश तुम्हारा देश, प्रो. कृष्ण कुमार (राजकमल प्रकाशन)
मैं आज नहीं पढ़ूँगा, प्रो. कृष्ण कुमार (राजकमल प्रकाशन)
दीवार का इस्तेमाल, प्रो. कृष्ण कुमार (एकलव्य प्रकाशन)
पहला अध्यापक, चिंगिज अतिमातोव (गार्गी प्रकाशन)
टू सर विद लव, ई.आर. ब्रेथवेट (हिंदी में भी इसी नाम से, प्रभात प्रकाशन)
बिना बोझ के शिक्षा, प्रो. यशपाल कमिटी की रिपोर्ट (सरकारी रिपोर्ट, किताब स्वरूप में भी प्रकाशित हुई)
बचपन से पलायन, जॉन होल्ट (एकलव्य प्रकाशन)
शिक्षा की बजाय, जॉन होल्ट (एकलव्य प्रकाशन)
असफल स्कूल, जॉन होल्ट (एकलव्य प्रकाशन)
बच्चे असफल कैसे होते हैं, जॉन होल्ट (एकलव्य प्रकाशन)
समरहिल, ए. एस. नील (एकलव्य प्रकाशन)
स्कूल में आज तुमने क्या पूछा, कमला वी मुकुन्दा (एकलव्य प्रकाशन)
अब हम आज़ाद हैं, डेनियल ग्रनीबर्ग (एकलव्य प्रकाशन)
जश्न-ए-तालीम, सुशील जोशी (एकलव्य प्रकाशन)
एक स्कूल मैनेजर की डायरी, फ़राह फ़ारूक़ी (एकलव्य प्रकाशन)
भारत में अँग्रेज़ी की समस्या, आर. के अग्निहोत्री और ए. एल. खन्ना (एकलव्य प्रकाशन)
लोकतांत्रिक विद्यालय, माइकल डब्ल्यू एपल और जेम्स ए बीन (एकलव्य प्रकाशन)
शिक्षा और नैतिक मूल्यों की खोज, अविजित पाठक (आकार बुक्स)
इन किताबों को पढ़ने के साथ-साथ, भीतर जिज्ञासा भी रखें। संदर्भ, शिक्षा-विमर्श, अनौपचारिका जैसी पत्रिकाओं और अरविंद गुप्ता की वेबसाइट arvindguptatoys.com पढ़ते रहें। बाल-साहित्य पढ़ें, इसके बिना शिक्षक का काम कैसे चल सकता है! इन किताबों को पढ़ने के बाद आपको पाठ्यक्रम की सीमा और बाल-साहित्य की ज़रूरत भी महसूस होगी।
इतना सब सोचकर ही आपको होमवर्क करने की परेशानियाँ दिखाई देने लगी होगीं। होमवर्क करना वाक़ई मुश्किल है, लेकिन शिक्षक को तो करना पड़ेगा।
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
07 अगस्त 2025
अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ
श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन उदास है। शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है। शांतिनिकेतन का शांत वातावरण अशांत
10 अगस्त 2025
क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़
Husayn remarked ironically, “A nation whose most notable manifestations are tombs and corpses!” Pointing to one of the pyramids, he continued: “Look at all that wasted effort.” Kamal replied enthusi
08 अगस्त 2025
धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’
यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी कहा जा रहा है। कितनी ही बार स्कूलों में, युवाओं के बीच में या फिर कह लें कि तथा
17 अगस्त 2025
बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है
• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना बड़ा कि अपने समय से लेकर आज तक वे कई कला-विधाओं के माध्यम से जनमानस के बीच रहे है
22 अगस्त 2025
वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है
प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में रखने से भी झिझकते हैं, जैसे कि मैं कोई बेढब कुत्ता हूँ; जो उनके घर में गंदे पं