Font by Mehr Nastaliq Web

शिक्षकों के लिए होमवर्क

ख़ाली वक़्त में फ़ंतासियाँ रचना या दूसरे ढंग से कहें तो फ़ंतासियों के बारे में सोचने के लिए ख़ाली वक़्त निकालना मेरे पसंदीदा कामों में से एक है। मेरी सबसे प्रिय फ़ंतासी यह है—जिसे सोचने में एलियन या सुपरहीरो को सोचने जितनी मेहनत नहीं लगती—क्या हो अगर भारत के अवयस्क नागरिक (बच्चे) अपनी स्वायत्तता प्राप्त कर लें, और कोई भी काम उनसे मजबूरी में ना करवाया जा सके। ऐसे में उन संज्ञाओं के साथ क्या होगा जिन्हें हम शिक्षक, स्कूल, पाठ्यक्रम, परीक्षा, टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, शिक्षा निदेशालय, शिक्षा मंत्रालय से संबोधित करते आए हैं।

यह बात हमें भले ही फ़ंतासी लगे, लेकिन अगर बच्चों को स्वायत्तता दी जाए तो ऐसे वाक्य हमें सुनने को मिलेंगे जो हमारे शैक्षणिक ढाँचें की नींव को ही हिला दें—“मैं नहीं पढ़ूँगा”, “मेरा अभी पढ़ने का कोई मूड नहीं है”, “आपको पढ़ाना आता ही नहीं है”, “यह घटिया किताब है”, “हम पूरी कक्षा के साथियों ने मिलकर तय किया है कि हम परीक्षा नहीं देंगे” इत्यादि। लेकिन प्रायः ऐसे वाक्य सुनने को नहीं मिलते हैं क्योंकि इसके लिए सालों का जतन कर एक व्यवस्था बनाई गई है जिसमें छात्र सिर्फ़ ग्राही हैं, और अपनी ‘तय सीमा’ में रह कर ही वह कुछ बात रखने के अधिकारी हैं। यह अधिकार भी सामाजिक पृष्ठभूमि और कक्षा में आपकी ‘मेरिट’ से तय होते हैं और अगर शुरुआत में ही किसी छात्र को ‘कमज़ोर’ और ‘लापरवाह’ जैसे शब्दों से लेबल कर दिया जाए तो उसके कक्षा में बोलने के ‘वैध’ अधिकार भी छिन जाते हैं। 

कुल जमा बात यह है—हमें कक्षा को किसी शक्ति संरचना से बाहर की कोई चीज़ नहीं समझना चाहिए। वह भी एक राजनीतिक क्षेत्र है, जिसे ज़ोर, हिंसा, वर्चस्व, चालाकी, संस्कारों का प्रयोग करते हुए चलाया जाता है और जहाँ शिक्षक के पास राज्य, सभ्यता और आर्थिक संरचना का पूरा समर्थन है। 

इस पूरी प्रक्रिया में शिक्षक एक जमात के तौर पर भागीदार-हिस्सेदार है, लेकिन पूर्णत: ज़िम्मेदार नहीं है। यहाँ किसी एक को ज़िम्मेदार बनाकर कार्यवाही करने वाली सरकारी प्रक्रिया नहीं अपनायी जा सकती। फिर भी शिक्षक को प्रशिक्षित करने वाले संस्थानों और योग्यता की परख करने वाले इम्तिहानों को ही देखें तो वह ख़ुद ख़राब शैक्षणिक पद्धति के शिकार हैं, तो इस यथास्थितिवाद को कैसे चुनौती दें? 

एक तो यह सवाल हमें बड़े ढाँचागत परिवर्तन की ज़रूरत बताता है, लेकिन उन ढाँचागत परिवर्तन के साथ एक शिक्षक ना दिखाई देने वाली इन समस्याओं को कैसे देख सकता है? वह कैसे एक बेहतर शिक्षक बनने का प्रयास कर सकता है, हालाँकि इस प्रक्रिया में उसे रोज़ नए सवालों का सामना करना पड़ता है। उनमें से अधिकतर के जवाब शिक्षक को ख़ुद अपनी रचनात्मकता और प्रयोगधर्मिता से ही खोजकर हल करने होंगे। इसके साथ ही यहाँ उसे में वैसी ही समस्या से जूझ रहे साथी शिक्षकों और इस प्रक्रिया में पहले से शामिल रहे शिक्षाविदों के सहयोग की भी ज़रूरत पड़ेगी। 

इसी प्रक्रिया में, मैं यहाँ पर हिंदी में छपी शिक्षा-संबंधित किताबों की वह सूची दे रहा हूँ—जो लोगों द्वारा सराही गई है, और जो हमें शिक्षा के विषय में थोड़ा और गहराई से समझने पर ज़ोर देती है। शिक्षक इसे अपना आख़िरी पाठ्यक्रम हरगिज़ ना माने, क्योंकि बेहतर शिक्षक बनने की प्रक्रिया लंबी, जटिल तो होती है और यह कई बार बहुत विशिष्ट स्थानीय या अपने विषय संबंधित समझ विकसित करने की माँग करती है। अगर बहुत सारे शिक्षक इन सब सवालों का सामना करेंगे, उनके बारे में सोचेंगे तो धीरे-धीरे इन किताबों की लिस्ट छोटी पड़ती जाएगी और शिक्षा साहित्य के एक समृद्ध, वैविध्यपूर्ण पब्लिक स्फेयर का निर्माण होता जाएगा। 

आलोचनात्मक चेतना के लिए शिक्षा, पाओलो फ़्रेरे (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन) 
उत्पीड़ितों का शिक्षाशास्त्र, पाओलो फ़्रेरे (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन) 
उम्मीदों का शिक्षाशास्त्र, पाओलो फ़्रेरे (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन)
विद्यालय के नाम पत्र बारबियाना के छात्रों द्वारा (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन)
अध्यापक, सिल्विया एस्टॉन वार्नर (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन)
बच्चों से बातचीत, गैरथ बी मैथ्यूज़ (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन)
शैक्षिक ज्ञान और वर्चस्व, प्रो. कृष्ण कुमार (ग्रंथशिल्पि प्रकाशन)
राज, समाज और शिक्षा, प्रो. कृष्ण कुमार (राजकमल प्रकाशन) 
चूड़ी बाज़ार में लड़की, प्रो. कृष्ण कुमार (राजकमल प्रकाशन) 
मेरा देश तुम्हारा देश, प्रो. कृष्ण कुमार (राजकमल प्रकाशन)
मैं आज नहीं पढ़ूँगा, प्रो. कृष्ण कुमार (राजकमल प्रकाशन)
दीवार का इस्तेमाल, प्रो. कृष्ण कुमार (एकलव्य प्रकाशन) 
पहला अध्यापक, चिंगिज अतिमातोव (गार्गी प्रकाशन) 
टू सर विद लव, ई.आर. ब्रेथवेट (हिंदी में भी इसी नाम से, प्रभात प्रकाशन)
बिना बोझ के शिक्षा, प्रो. यशपाल कमिटी की रिपोर्ट (सरकारी रिपोर्ट, किताब स्वरूप में भी प्रकाशित हुई) 
बचपन से पलायन, जॉन होल्ट (एकलव्य प्रकाशन) 
शिक्षा की बजाय, जॉन होल्ट (एकलव्य प्रकाशन)
असफल स्कूल, जॉन होल्ट (एकलव्य प्रकाशन)
बच्चे असफल कैसे होते हैं, जॉन होल्ट (एकलव्य प्रकाशन)
समरहिल, ए. एस. नील (एकलव्य प्रकाशन)
स्कूल में आज तुमने क्या पूछा, कमला वी मुकुन्दा (एकलव्य प्रकाशन)
अब हम आज़ाद हैं, डेनियल ग्रनीबर्ग (एकलव्य प्रकाशन)
जश्न-ए-तालीम, सुशील जोशी (एकलव्य प्रकाशन)
एक स्कूल मैनेजर की डायरी, फ़राह फ़ारूक़ी (एकलव्य प्रकाशन)
भारत में अँग्रेज़ी की समस्या, आर. के अग्निहोत्री और ए. एल. खन्ना (एकलव्य प्रकाशन)
लोकतांत्रिक विद्यालय, माइकल डब्ल्यू एपल और जेम्स ए बीन (एकलव्य प्रकाशन)
शिक्षा और नैतिक मूल्यों की खोज, अविजित पाठक (आकार बुक्स) 

इन किताबों को पढ़ने के साथ-साथ, भीतर जिज्ञासा भी रखें। संदर्भ, शिक्षा-विमर्श, अनौपचारिका जैसी पत्रिकाओं और अरविंद गुप्ता की वेबसाइट arvindguptatoys.com पढ़ते रहें। बाल-साहित्य पढ़ें, इसके बिना शिक्षक का काम कैसे चल सकता है! इन किताबों को पढ़ने के बाद आपको पाठ्यक्रम की सीमा और बाल-साहित्य की ज़रूरत भी महसूस होगी। 

इतना सब सोचकर ही आपको होमवर्क करने की परेशानियाँ दिखाई देने लगी होगीं। होमवर्क करना वाक़ई मुश्किल है, लेकिन शिक्षक को तो करना पड़ेगा।

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

06 अक्तूबर 2024

'बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला...'

06 अक्तूबर 2024

'बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला...'

यह दो अक्टूबर की एक ठीक-ठाक गर्मी वाली दोपहर है। दफ़्तर का अवकाश है। नायकों का होना अभी इतना बचा हुआ है कि पूँजी के चंगुल में फँसा यह महादेश छुट्टी घोषित करता रहता है, इसलिए आज मेरी भी छुट्टी है। मेर

24 अक्तूबर 2024

एक स्त्री बनने और हर संकट से पार पाने के बारे में...

24 अक्तूबर 2024

एक स्त्री बनने और हर संकट से पार पाने के बारे में...

हान कांग (जन्म : 1970) दक्षिण कोरियाई लेखिका हैं। वर्ष 2024 में, वह साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली दक्षिण कोरियाई लेखक और पहली एशियाई लेखिका बनीं। नोबेल से पूर्व उन्हें उनके उपन

21 अक्तूबर 2024

आद्या प्रसाद ‘उन्मत्त’ :  हमरेउ करम क कबहूँ कौनौ हिसाब होई

21 अक्तूबर 2024

आद्या प्रसाद ‘उन्मत्त’ : हमरेउ करम क कबहूँ कौनौ हिसाब होई

आद्या प्रसाद ‘उन्मत्त’ अवधी में बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’ की नई लीक पर चलने वाले कवि हैं। वह वंशीधर शुक्ल, रमई काका, मृगेश, लक्ष्मण प्रसाद ‘मित्र’, माता प्रसाद ‘मितई’, विकल गोंडवी, बेकल उत्साही, ज

02 जुलाई 2024

काम को खेल में बदलने का रहस्य

02 जुलाई 2024

काम को खेल में बदलने का रहस्य

...मैं इससे सहमत नहीं। यह संभव है कि काम का ख़ात्मा किया जा सकता है। काम की जगह ढेर सारी नई तरह की गतिविधियाँ ले सकती हैं, अगर वे उपयोगी हों तो।  काम के ख़ात्मे के लिए हमें दो तरफ़ से क़दम बढ़ाने

13 अक्तूबर 2024

‘कई चाँद थे सरे-आसमाँ’ को फिर से पढ़ते हुए

13 अक्तूबर 2024

‘कई चाँद थे सरे-आसमाँ’ को फिर से पढ़ते हुए

शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी के उपन्यास 'कई चाँद थे सरे-आसमाँ' को पहली बार 2019 में पढ़ा। इसके हिंदी तथा अँग्रेज़ी, क्रमशः रूपांतरित तथा अनूदित संस्करणों के पाठ 2024 की तीसरी तिमाही में समाप्त किए। तब से अब

बेला लेटेस्ट

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए