विश्वविद्यालय के प्रेत
सन् सत्रह के जुलाई महीने की चौथी तारीख़ थी। मैं अच्छे बच्चे की तरह बारहवीं के आगे की पढ़ाई करने के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में दाख़िला लेने के लिए बनारस जा पहुँचा था। कॉलेजों की, यूनिवर्सिटियों क
जिम जाने वाला लेखक
यह एक भटका हुआ निबंध है, इसको अपने रिस्क पर गंभीरता से लें, मुझे भी गंभीरता से अपने रिस्क पर लें। मैं बहुत दोग़ला हूँ! कुछ वक़्त पहले एक विकृत विचार दिमाग़ में आया; क्या एक लेखक जिम प्रेमी हो सकता
ग्लोबल विलेज के शोर में पुरबिया गाँव
यह संस्मरण भूमंडलीय पीढ़ी का देहाती क़िस्सा है। गाँव-देहात को इसलिए नहीं याद कर रहा हूँ कि मेरे पास कुछ कहने के लिए कुछ यादें हैं, बल्कि इसलिए याद कर रहा हूँ कि मेरी पीढ़ी ने बदलावों को इतने तीव्र गति